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अस्पतालों में दवाओं का टोटा, जांच को तरसे मरीज

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कविता

सरकार जहां एक तरफ नौ वर्ष पूर्ण होने का जश्न जोर-शोर से मनाते हुए उपलब्धियां गिनवा रही है। वहीं दूसरी तरफ शहर के अस्पतालों में दवाओं का टोटा है। दवाईयों जैसी आवश्यक सुविधाएं पिछले कई सालों से उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है। ऐसे में मरीजों को महंगी दवाईयां खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसा ही अस्पतालों में देखने को मिल रहा है। अस्पतालों में मरीजों को जांच की सुविधाएं भी नसीब नहीं हो रही है। क्योंकि सरकार की तरफ से जांच का सामान ही नहीं भेजा जा रहा है।

मरीजों का कथन:

जिले के सबसे बडे बीके सिविल अस्पताल में मरीजों को दवाईयां नहीं मिल रही है। यहां जांच भी यहां नहीं की जा रही है। ऐसे में मरीजों का कहना है कि सरकार नौ साल पूरे होने का जश्न मना रही है। अस्पताल और मेडिकल कॉलेज खोलने का दावा कर रही है। लेकिन जो अस्पताल वषों से चल रहे हैं, उनमें तो दवाईयां उपलब्ध करवा दें। न तो अस्पतालों में दवाईयां मिलती है और न ही जांच हो पा रही है। कभी यहां जांच की मशीन खराब रहती है तो कभी यहां जांच का सामान खत्म हो जाता है। ऐसे में मरीजों को भारी परेशानियों का सामना करने को मजबूर होना पड़ रहा है। मरीजों को बाहर से दवाईयां खरीदनी और जांच करवानी पड़ रही है।

नहीं आ रही दवाईयां और सामान:

अस्पताल प्रबंधन से बात की गई तो पता चला कि अस्पताल में दवाईयां पीछे से ही नहीं आ रही है। सिविल अस्पताल के अलावा प्रदेश भर के अस्पतालों में दवाईयों का भारी आभाव है। सरकार की तरफ से दवाईयां भेजी जाएगी, तभी यहां दवाईयां उपलब्ध होगी। वहीं दूसरी तरफ पता चला कि जांच का सामान भी समाप्त होने पर डिमांड भेज दी जाती है लेकिन सरकार जब भेजेगी, तभी जांच शुरू हो पाऐंगी। आधे से ज्यादा टेस्ट मरीजों को बाहर से करवाने पड़ रहे है।

वहीं आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाईयां भी मरीजों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है। कुत्तों के काटने पर लगाए जाने वाले इंजेक्शन भी बीके सिविल अस्पताल में गत 27 फरवरी से समाप्त हैं। वहीं दूसरी तरफ बीमारियों को देखते हुए मौसमी बीमारियों की दवाईयां तक मरीजों को उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। वहीं एलएफटी, केएफटी जैसी जांच मरीजों की अस्पताल में नहीं हो पा रही है।

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