मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पुराने साथी उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से निकलने पर वैसी बात नहीं कही थी, जैसी अब महागठबंधन सरकार से मंत्री संतोष कुमार सुमन उर्फ संतोष मांझी के इस्तीफे को लेकर कही है। उन्होंंने जीतन राम मांझी का भाजपा का मुखबिर करार देते हुए कहा कि वह विपक्षी एकता की हमारी मुहिम में बाधक हो सकते थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने जीतन राम मांझी से कहा था कि अपनी पार्टी का जदयू में विलय कीजिये या फिर अलग हो जाइए। अगर वे साथ रहते तो भाजपा को सूचना पहुंचाते रहते। देश की विपक्षी पार्टियों की पटना में बैठक होने वाली है। वह चाहते थे कि उस बैठक में वह भी रहें। यह बात सबको मालूम है कि वो भाजपा के लोगों से मिल रहे थे। हमारे यहां भी वे आकर मिल रहे थे और सब बात कहते थे। इसकी जानकारी मुझे थी। एक बार हमसे जब वो मिलने आए तो हमने उनसे कहा कि आपको हमने जितना सम्मान दिया है उतना कोई और नहीं दे सकता है। आप या तो अपनी पार्टी को जदयू में मर्ज कीजिए या फिर अलग होना है तो अलग हो जाइए। उन्होंने पार्टी के मर्ज होने को नहीं स्वीकार किया और अलग हो गए। विपक्षी दलों की बैठक में सबलोग अपनी-अपनी पार्टी की बात करते और अगर ये लोग साथ रहते तो बैठक में जो कुछ भी बातें होती वो सारी बातें भाजपा को खबर हो जाती। हम तो अपने कोटा से उनको मंत्री बनाए थे।
मुख्यमंत्री ने संतोष सुमन की जगह मंत्री बनाए गए रत्नेश सादा (सदा) के शपथ ग्रहण के बाद कहा कि वह इन्हें बहुत पहले से जानते हैं। सीएम ने कहा- “रत्नेश सदा तीसरा टर्म चुनाव जीतकर आए हैं। हमने रत्नेश सादा को बुलाया और पार्टी के अन्य लोगों से भी बात की, उसके बाद गवर्नर साहब से मंत्री बनाए जाने को लेकर बात हुई। संतोष कुमार सुमन के इस्तीफा को हमने राज्यपाल को भेजवा दिया और उसे स्वीकार कर लिया गया।”