यदि कभी अपराध हो जाए, तो क्षमा मांग लेना ही सबसे ज्यादा श्रेयस्कर है। सच्चे हृदय से मांगी गई क्षमा से एक तो अपराध बोध कम होता है, वहीं हृदय भी निर्मल हो जाता है। क्षमा देने वाला भी महान हो जाता है और क्षमा मांगने वाला भी। हमारे पुरखों ने अपने साहित्य में क्षमा को सबसे बड़ा पुरुषार्थ कहा है क्योंकि किसी गलती करने वाले को माफ कर पाना आसान काम नहीं है। एक बार की बात है। महात्मा गांधी के बहुत करीबी मित्र थे डॉ. प्राणजीवन मेहता। उन्होंने महात्मा गांधी की बहुत मदद की थी। साउथ अफ्रीका जाने और वहां से आने में मेहता का बहुत योगदान था।
डॉ. मेहता के एक भाई थे रेवाशंकर। रेवाशंकर गांधी जी के प्रिय शिष्यों में थे। रेवाशंकर महात्मा गांधी को बहुत मानते थे। मेहता परिवार मुंबई में रहता था। एक बार की बात है, महात्मा गांधी मुंबई पहुंचे तो वह रेवाशंकर के घर पहुंचे। मुंबई में गांधी जी हमेशा मेहता परिवार के यहां ही रहते थे। गांधी जी के साथ उनके प्रिय शिष्यों में से एक आनंद स्वामी भी थे। एकाध दिन के बाद आनंद स्वामी की रेवाशंकर के रसोइए से उनकी कुछ कहासुनी हो गई। आवेश में आकर आनंद स्वामी ने रेवाशंकर के रसोइये को थप्पड़ मार दिया। इस घटना से सब लोग अवाक रह गए। सबने इस बात की पूरी कोशिश की कि इस बात का पता गांधी जी को न चले, लेकिन गांधी जी को सब पता चल गया।
गांधी जी ने आनंद को बुलाकर कहा कि तुम्हें उस व्यक्ति से माफी मांगनी होगी। आनंद स्वामी हिचकिचाए, तो गांधी जी ने कहा कि यदि तुम्हारा झगड़ा किसी बड़े व्यक्ति से होता, तो क्या तुम थप्पड़ मारते। जब तक तुम रसोइये से माफी नहीं मांगते मेरे साथ नहीं रह सकते हो। यह सुनकर आनंद स्वामी ने तत्काल जाकर रसोइये से माफी मांगी और रसोइये ने उन्हें क्षमा कर दिया।