2024 के आने वाले चुनाव में दक्षिण की बात करें तो कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन के बाद बीजेपी अपने मजबूत गढ़ में चुनाव को लेकर चिंतित दिखाई दे रही है। पिछले चुनाव में लोकसभा की 28 में से 25 सीटें जीतने वाली बीजेपी को अब राज्य में नई रणनीति पर काम करना होगा और यही कारण है कि पार्टी अभी तक राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और नए पार्टी अध्यक्ष की नई नियुक्ति को लेकर मंथन में लगी हुई है। बीजेपी की दक्षिण भारत की चुनावी रणनीति की बात करें तो उस वक्त बड़ा झटका लगा था जब की हाल में उसे कर्नाटक में कांग्रेस के हाथों अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी इसके साथ ही बीजेपी के हाथ से उसका दक्षिण का एकमात्र किला भी निकल गया इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपना पूरा दमखम लगाएं और सत्ता पर काबिज हो।
बीजेपी को लोकसभा में बड़ी बढ़त मिलती है इसलिए यह ज्यादा जरूरी है कि वह इस तरफ ज्यादा ध्यान दें साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 28 सीटों में से 25 पर कब्जा किया था और अब 2024 में दोबारा से उसे अपनी सत्ता को कायम करना है और इसके लिए उस पर दबाव बना हुआ है राज्य में राजनीतिक परिस्थितियों में बीजेपी को अपने नेतृत्व के लिए साथ साथ सामाजिक समीकरणों को भी ध्यान रखना होगा।
बीएस येदुरप्पा के सक्रिय चुनावी राजनीति से अलग होने के बाद से ही पार्टी राज्य में उनका विकल्प नहीं खोज पाई है और तब से ही उसका मजबूत समर्थक वर्ग लिंगायत भी खिसक गया है दूसरा बड़ा समुदाय वोक्कालिंगा भी बंटा हुआ दिखाई देता है अब तक ये समुदाय अपने बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगुड़ा के साथ था लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में उसका एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ चला गया था ऐसे में बीजेपी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के अलावा कर्नाटक में कोई दूसरा प्रभावी सामाजिक और राजनीतिक समीकरण वाला चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है और इसी बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भी दिल्ली में केंद्र नेताओं से मुलाकात की है तो ऐसे में यही कयास लगाए जा रहे हैं की पार्टी मौजूदा स्थिति को देखते हुए मुंबई को ही विधानसभा में नेता बन सकती है
अगर आने वाले चुनाव में पार्टी किसी से कम होती है तो दक्षिण के किसी और राज्य में बढ़ाने की उम्मीद भी नहीं दिखाई देती है केरल में बीजेपी का लोकसभा में कभी खाता ही नहीं खुला है तो वहीं तमिलनाडु में भी पार्टी कमजोर स्थिति में है इसलिए वहां कोई सीट मिलेगी या नहीं मिलेगी यह नहीं कहा जा सकता है आंध्र में उसकी संभावनाएं बिल्कुल नहीं दिख रही है तेलंगाना में कुछ सीटें जीत सकती है क्योंकि अभी वहां 17 सीटों में से उसके पास चार सीटें हैं इसलिए पार्टी को कर्नाटक में जीत के लिए नए सामाजिक समीकरण बनाने होंगे और जिसकी तलाश में पार्टी जुट गई है।