देश रोज़ाना: न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के कस्बे निंफाड में हुआ था।उनके पिता कोल्हापुर रियासत में मंत्री थे। उनका पालन पोषण वहीं हुआ था। इन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय में बीए और एलएलबी प्रथम श्रेणी से पास की थी। बाद में वे पुणे में न्यायाधीश नियुक्त किए गए। यह किस्सा तब का है, जब महादेव गोविंद रानाडे बालक थे। एक दिन वह घर में अकेले थे। वह समझ नहीं पा रहे थे कि समय कैसे कटे। तो उन्होंने सोचा कि कोई ऐसा खेल खेला जाए जिसको एक आदमी भी खेल सके। उन्होंने पासा उठाया और घर के बाहरी हिस्से में चले गए।
चौपड़ बिछाई और सामने के खंभे को उन्होंने अपने खेल का साथी मानते हुए दायां हाथ उसके लिए नियत कर दिया। अपने लिए उन्होंने बायां हाथ तय किया। इसके बाद खेल शुरू हुआ। इस बीच उधर से गुजर रहे कुछ लोगों ने एक बच्चे को अकेले चौसर खेलते देखा, तो वे चुपचाप उसके पीछे आकर खड़े हो गए। रानाडे ने खेल शुरू कर दिया। बायें हाथ से वे अपने लिए पासा फेंकते और दाहिने हाथ से खंभे के लिए। वे खेल में इतने मगन हो गए कि उन्हें आसपास का कोई खयाल ही नहीं रहा। खेल आगे बढ़ता रहा। नतीजा यह हुआ कि वे खंभे सेहार गए।
रानाडे की ईमानदारी देखकर लोग आश्चर्यचकित थे। खेल के दौरान उन्होंने पूरी ईमानदारी का परिचय दिया। लोगों ने खेल खत्म होने पर लोगों ने तालियां बजाते हुए कहा कि क्या रानाडे, अपने ही दाहिने हाथ से हार गए। रानाडे ने जवाब दिया कि बायें हाथ से पासा फेंकने का अभ्यास न होने से हार गया। लोगों ने कहा कि तुमने अपने लिए दायां हाथ क्यों नहीं चुना? इस पर रानाडे ने कहा कि खंभा निर्जीव है। वह पासा नहीं फेंक सकता था। अगर मैं उसके लिए बायां हाथ चुनता तो यह उसके साथ बेईमानी होती। मुझे अपने हारने का दुख नहीं है।
अशोक मिश्र