G20 शिखर सम्मेलन में एक और अच्छी बात जो सामने आई वो थी भारत को एटमी आपूर्तिकर्ता बनाने को फ्रांस की तरफ से कहां गया है कि भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता मिलनी चाहिए। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता के दौरान इस हम समूह में भारत के सदस्यता का समर्थन किया है।
संयुक्त बयान के मुताबिक भारत और फ्रांस में रक्षा औद्योगिकी रूपरेखा को जल्दी ही अंतिम रूप देने का वहन किया है दोनों देशों के बीच जैतापुर परमाणु संयंत्र पर भी चर्चा हुई फ्रांस ने चंद्रयान की सफलता पर भारत को बधाई दी इसके साथ ही फ्रांस में अफ्रीकी संघ यूए का सदस्य बनने का भी स्वागत किया। फ्रांस ने कहा कि वह अफ्रीका की प्रगति समृद्धि विकास के लिए और के साथ एयू के साथ काम करने के लिए तत्पर है।
तो वहीं दोनों देशों ने यह भी दोहराया कि किसी दूसरे देश में नहीं रक्षा तकनीक के निर्माण को लेकर भी काम करना है दोनों देशों ने रक्षा सहयोग को बढ़ाने का संकल्प लिया प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स यानी कि ट्विटर पर पोस्ट किया राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ लंच के दौरान हुई बातचीत सफल रही।
दोनों देश अपने संबंधों की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए तत्पर है प्रधानमंत्री मोदी जी ने जी 20 की भारत की अध्यक्षता के लिए फ्रांस के लगातार समर्थन के लिए राष्ट्रपति मैक्रों को धन्यवाद दिया,इसके साथ फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने भारत फ्रांस सुरक्षा के संबंधों के बारे में कहां की आने वाले महीनों में और सालों में और भी करार होंगे और रक्षा उपकरणों की खरीद भी होगी।
मैक्रों ने यह भी कहा कि जी 20 के ज्यादातर देशों ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा की है लेकिन जी-20 को किसी एक मुद्दे पर फंसे नहीं रहना चाहिए,इसके अलावा फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों की तरफ से कहा गया कि जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत ने दुनिया को एकता और शांति का संदेश दिया है मौजूदा माहौल को देखते हुए भारत ने जी 20 अध्यक्ष के तौर पर अच्छा काम किया है।
तो वहीं परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में 48 देश है लेकिन भारत उसका का सदस्य नहीं है हालांकि साल 2008 में हुए नागरिक परमाणु समझौते के तहत भारत को शर्तों के साथ यूरेनियम की आपूर्ति होती है लेकिन इस समूह का सदस्य बनने से कहीं और तकनीक के हासिल करने का रास्ता साफ हो सकता है चीन भारत की सदस्यता का विरोध करता रहा है दरअसल भारत परमाणु अप्रसार संधि का पक्ष धर नहीं है इसलिए उसके सदस्यता में मुश्किलें हैं लेकिन फ्रांस के समर्थन से भारत की दावेदारी की मजबूती नजर आ रही है।