सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर लगातार सुनवाई हो रही है संविधान पीठ के सामने 16 दिन में हुई सुनवाई में दस दिन याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलीलें दी गई। जबकि केंद्र सरकार की तरफ से छह दिन दलीलें पेश की गई। संविधान पीठ की तरफ से इस पूरे मामले में दलील देने वाले सभी वकीलों का धन्यवाद दिया गया। इसके साथ उन्होंने सभी को दो दिन के अंदर संक्षिप्त तौर पर लिखित में दलील पेश करने का निर्देश भी दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने पीठ को बताया कि 1950 में संविधान के अनुच्छेद 370 का प्रावधान किए जाने के चलते जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता का एक महासागर उपलब्ध था उनकी इस बात पर जस्टिस खन्ना की तरफ से कहा गया कि संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की गई है कि इस भारत के लोगों द्वारा अपनाया जा रहा है जिसमें जम्मू और कश्मीर के लोग भी शामिल है तो वहीं न्यायमूर्ति की तरफ से कहा गया कि हम भारत के लोग में जम्मू कश्मीर के लोग भी शामिल है।
हर वक्त के साथ आगे बढ़े हैं और हमें चलते रहने की जरूरत है, अनुच्छेद 370 का दूसरा भाग हमारे सामने मुख्य संवैधानिक चुनौती है उनकी इस बात पर सीनियर एडवोकेट जफर शाह की तरफ से कहा गया कि दो संविधान रखने की प्रथा और सामान्य नहीं थी हमें हमारा स्वच्छ शासन वापस दीजिए। एकीकृत राष्ट्र के लिए हमें लोगों का दिल जीतना होगा।अगर मामला हमारे पक्ष में तय हुआ तो हम जम्मू कश्मीर के लोगों का दिल जीतने में मदद करेंगे याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने संविधान पीठ के सामने इस बात पर जोर दिया कि भारत राज्यों का एक संघ है और जम्मू कश्मीर के निवासियों को राज्य में रहने के साथ मिलने वाले अधिकारों से वंचित करने का कोई संवैधानिक आधार नहीं है।
कपिल सिब्बल की तरफ से टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यह संविधान कैसा दिखना चाहिए और इसकी व्याख्या कैसी की जानी चाहिए इस बारे में आपका यह कोर्ट अंतिम मध्यस्थ है, मैं चुपचाप निकल जाता हूं, लेकिन कोर्ट को बोलने दीजिए और भारत को सुनने दीजिए ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी तरह से परामर्श के बिना कार्य किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की तरफ से अकबर लोन के बयानों को लेकर आए इस मोड को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया उन्होंने इस पर जोर दिया कि किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि किसी के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडा है हमारी कोर्ट तक पहुंच अधिकार का इस्तेमाल संवैधानिक ढांचे के अंदर है हमने अटॉर्नी जनरल या सॉलीसीटर को यह कहते नहीं सुना कि इन अर्जियों को खारिज कर दिया जाना चाहिए कि यह एक अलगाववादी एजेंडा है।