वैसे दुनिया में अमीर तो लाखों लोग होते हैं, लेकिन गरीबों के प्रति दयावान इन लाखों में से कुछ ही लोग होते हैं। देश या प्रदेश में जब भी कोई आपदा आती है, तो कुछ ही लोग मदद के लिए आगे आते हैं। ऐसे ही एक अमीर सेठ थे जगडुशाह। बात तेरहवीं सदी की है। उस समय गुजरात में भीषण अकाल पड़ा। लाखों लोग इससे प्रभावित हुए। लोगों के पास न खाने को कुछ बचा, न कमाने का कोई जरिया बचा था। भूखों मरने की नौबत आ गई। ऐसे समय में सेठ जगडुशाह आगे आए। उन्होंने गुजरात में जगह-जगह अन्नशालाएं खुलवा दीं। लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की।
हजारों गरीब लोग इन अन्नशालाओं पर आकर भोजन करने लगे। सेठ ने बराबर इस बात का ख्याल रखा कि किसी भी इलाके में कोई आदमी भूखा न सोने पाए। जहां से भी उनको सूचना मिलती कि फलां इलाके में लोगों के पास खाने को नहीं है, वह झट से वहीं अन्नशाला खुलवा देते। यह देखकर गुजरात का राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। राजा भी प्रजावत्सल था। वह अपनी प्रजा का भला करना चाहता था। एक दिन राजा ने जगडुशाह के पास संदेश भिजवाया कि वह उसे सम्मानित करना चाहता है। सेठ ने राजा की बात स्वीकार कर ली।
नियत समय पर वह राजदरबार में पहुंचे। सम्मान के बाद जब सेठ चलने लगा, तो राजा ने कहा कि वह उनके अनाज भंडार से अनाज खरीदना चाहता है ताकि वह भी अपनी प्रजा में अन्न बंटवा सके। इस पर सेठ ने कहा कि उसके पास बेचने के लिए अनाज ही नहीं है। मेरे पास जो कुछ भी अनाज है, वह प्रजा के लिए है। उसे कैसे बेच सकता हूं। राजा सेठ की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। सेठ के सात सौ अन्न भंडार थे और सब जगह लिखा हुआ था, यह अन्न प्रजा के लिए है, बेचने के लिए नहीं।
अशोक मिश्र -लेखक