राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने आठ दवाओं के ग्यारह अनुसूचित यौगिकों की कीमतों में 50 प्रतिशत तक वृद्धि की अनुमति दी है। एनपीपीए के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के तहत निर्णय
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि यह फैसला 8 अक्टूबर को एनपीपीए की बैठक में लिया गया, जिसमें औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के पैरा 19 के तहत दी गई असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल किया गया। इस निर्णय का उद्देश्य सस्ती दवाओं की उपलब्धता को बनाए रखना है, जबकि दवा निर्माताओं के लिए उत्पादन की वित्तीय व्यवहार्यता भी सुनिश्चित की जा सके।
दवाओं के उत्पादन की लागत में वृद्धि के कारण फैसला
दवा निर्माताओं ने एपीआई (सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री) की बढ़ती लागत, उत्पादन खर्च में वृद्धि और विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के कारण मूल्य संशोधन की मांग की थी। जिन दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है, उनमें अस्थमा, ग्लूकोमा, थैलेसीमिया, तपेदिक और मानसिक स्वास्थ्य विकारों के उपचार के लिए महत्वपूर्ण दवाएं शामिल हैं। ये दवाएं अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्रथम-पंक्ति उपचार के रूप में प्रयोग की जाती हैं, और इस मूल्य समायोजन का उद्देश्य उत्पादन संबंधी चुनौतियों के कारण दवाओं की संभावित कमी या अनुपलब्धता को रोकना है।
इन दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी
इन दवाओं की सूची में बेंजिल पेनिसिलिन 10 लाख IU इंजेक्शन, एट्रोपिन इंजेक्शन 0.6 mg/ml, स्ट्रेप्टोमाइसिन पाउडर (750 mg और 1000 mg) इंजेक्शन, साल्बुटामोल टैबलेट (2 mg और 4 mg) और रेस्पिरेटर सॉल्यूशन (5 mg/ml), पिलोकार्पाइन 2 प्रतिशत ड्रॉप्स, सेफैड्रोक्सिल टैबलेट 500 mg, डेसफेरियोक्सामाइन इंजेक्शन 500 mg और लिथियम टैबलेट 300 mg शामिल हैं। इससे पहले, 2019 और 2021 में भी इसी प्रकार के कदम उठाए गए थे, जब क्रमशः 21 और 9 दवाओं की कीमतों में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी।