लोकसभा में गुरुवार को दिल्ली सेवा विधेयक को ध्वनि मत से पास कर दिया गया अब यह बिल राज्यसभा में सोमवार को पेश किया जा सकता है। सत्ता पक्ष के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसके बावजूद भी इस विधायक को पारित करना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा ऐसा इसलिए क्योंकि एनडीए और इंडिया गठबंधनों से बाहर 6 दलों के राज्यसभा में 28 सांसद है। तीन दल सरकार को समर्थन का संकेत पहले दे चुके हैं,ऐसे में संख्या बल मजबूत होने के बावजूद भी विपक्ष एकजुट की कमी के कारण कमजोर पड़ सकता है। राज्यसभा में 238 सदस्य हैं बिल पारित करवाने के लिए 120 सदस्यों का समर्थन सरकार के पास चाहिए लेकिन एनडीए के पास इस वक्त 110 सदस्य हैं, तीन निर्दलीयों में से एक के समर्थन का दावा किया जा रहा है फिर भी 9 और सदस्यों की जरूरत पड़ती है ऐसे में 11 तथा जो पार्टियां है जिनकी लोकसभा में उपस्थित और उनके पास 63 सांसद भी है तटस्थ दलों में वाईएसआर कांग्रेस नौ, बीजू जनता दल नौ, बीआरएस सात,बीएसपी एक, जेडीएस एक,टीडीपी एक है।
इसमें से वाईएसआर कांग्रेस, बीजद, टीडीपी ने दिल्ली से जुड़े विधेयक पर सरकार को समर्थन का संकेत पहले ही दे दिया है। दूसरी तरफ राज्य सभा में विपक्ष यानी इंडिया के पास 97 सीटों का संख्या बल है, तीन निर्दलीय में से एक एनडीए के पास अगर जाता है और दो इंडिया के पास आते हैं तो भी यह संख्या 99 तक ही पहुंचती है और तटस्थ 6 दलों के 28 में से 19 सांसद एनडीए के साथ जाने का दावा पहले ही कर चुके हैं।
ऐसे में बचे हुए 9 सदस्य अगर विपक्ष का साथ दे सकते हैं, जिसमें बीआरएस के सात, जेडीएस–बीएसपी के एक-एक सदस्य शामिल होंगे। हालांकि बीएसपी और जेडीएस को लेकर यह कहा जा रहा है कि वे या तो सरकार के साथ जाएंगे या तटस्थ रहना पसंद करेंगे और बीआरएस आम आदमी पार्टी के साथ जा सकती है। यानी कि राज्यसभा में देखा जाए तो असली ताकत तो विपक्ष के पास है अगर विपक्ष एकजुट रहता है तो और सभी छह तटस्थ दल भी विपक्ष गठबंधन इंडिया के साथ आ जाएं तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। 127 सीटों का संख्या बल विपक्ष के पास हो जाएगा हालांकि राज्यसभा में विपक्ष कभी एकजुट दिखा नहीं है। सारी तस्वीर सोमवार को साफ हो जाएगी।