देश रोज़ाना: समाज के निर्माण में स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हमारा समाज कैसा हो, इसकी समझ हमें स्कूल-कालेजों से ही मिलती है। स्कूल-कालेजों में शिक्षण व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था पर ही समाज और देश का भविष्य निर्भर करता है। अगर हम इतिहास में जाएं, तो पाएंगे कि जब हमारे देश में उन्नत स्कूल,कालेज और विश्वविद्यालय हुआ करते थे, तो हमारा देश सभी क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के काल का इतिहास उठाकर देख लीजिए। शिक्षक को इसीलिए देश और समाज का भविष्य निर्माता कहा जाता है क्योंकि वह अपने शिष्यों के रूप में देश का भविष्य गढ़ता है।
शिक्षक यदि चाहे तो बच्चों का भविष्य संवार सकता है या बिगाड़ सकता है। कहा भी गया है कि यदि किसी देश को गुलाम बनाना है, तो उस देश की शिक्षा व्यवस्था को ही बिगाड़ दो। देश अपने आप कमजोर हो जाएगा। यही वजह है कि हरियाणा के मुखिया मनोहर लाल पिछले नौ सालों से शिक्षा व्यवस्था को उन्नत करने की दिशा में लगातार सक्रिय हैं। उनकी प्राथमिकता में प्रदेश के स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय हैं। प्रदेश सरकार ने अब तय किया है कि जिन स्कूलों को अस्थायी मान्यता मिली हुई है, वे 31 मार्च तक स्थायी मान्यता हासिल कर लें, ताकि शिक्षा के स्तर को उन्नत किया जा सके। इस मामले में सरकार स्कूल प्रबंधकों को कुछ छूट देने को भी तैयार है।
अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों को सरकार ने जमीन और भवन के लिए निर्धारित नियमों में थोड़ी बहुत छूट देने का फैसला किया है। जैसे किसी पांचवीं तक के स्कूल को स्थायी या अस्थायी मान्यता प्राप्त है, तो वह आठवीं तक मान्यता के लिए आवेदन कर सकता है। आठवीं वाले स्कूल दसवीं और बारहवीं तक के लिए मान्यता हासिल कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें बांड भरना होगा। यदि इसी सत्र में उन्होंने नियमों को पूरा नहीं किया, तो न केवल उनकी बांड राशि जब्त कर ली जाएगी, बल्कि भविष्य में उन्हें मान्यता भी नहीं दी जाएगी। एक मंजिल की इमारत में संचालित स्कूलों को 20 फीसदी और दो मंजिली इमारत में संचालित स्कूलों को 25 प्रतिशत तक छूट दी जाएगी।
प्रदेश सरकार का यह कदम सराहनीय है। सरकार लगातार इस प्रयास में है कि सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को सभी सुविधाएं हासिल हों जो उनकी शिक्षा के लिए आवश्यक हैं। अक्सर देखा जाता है कि कई स्कूलों में न तो ठीक तरह से खेलने की जगह होती है, न खेलने का सामान। शौचालय तक की व्यवस्था ठीक से नहीं की जाती है। छात्र-छात्राओं के लिए एक ही शौचालय उपयोग में लाया जाता है। शिक्षक भी ट्रेंड नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई ठीक तरीके से नहीं हो पाती है। उनका शैक्षिक विकास रुक जाता है। वे अन्य स्कूलों के बच्चों की अपेक्षा पिछड़ जाते हैं।
– संजय मग्गू