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विनोबा भावे ने मां की सीख हमेशा याद रखी

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देश रोज़ाना: विनोबा भावे का वास्तविक नाम था विनायक नरहरि भावे। उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित गागोदा गांव में हुआ था। चितपावन ब्राह्मण नरहरि भावे को रसायन और गणित विषय बहुत पसंद था। वे रात-दिन रंगों की खोज में लगे रहते थे। विनोबा भावे को महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है। विनोबा नाम भी महात्मा गांधी का दिया हुआ है। महाराष्ट्र में नाम के बाद बा लगाने का चलन है। उनकी मां रुक्मिणी बाई आध्यात्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। विनोबा के बचपन की बात है।

जब विनोबा छोटे थे, तो उनके घर पर विनोबा का एक मित्र भी रहता था। आम तौर पर घरों में खाना इस तरह बनाया जाता है कि खाते समय कम न पड़े। इस वजह से हर घर में कुछ न कुछ खाना बच ही जाता है। तो रात को बचा हुआ बासी खाना वह अपने बेटे विनायक को दे दिया करती थीं और ताजा खाना वह उनके मित्र को। इस बात को विनायक जानते थे। एक दिन बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी मां से मजाक में कहा कि आप मुझसे भेदभाव करती हैं। मुझे बासी खाना देती हैं और मेरे मित्र को ताजा। यह बात सुनकर उनकी मां ने कहा कि क्या करूं बेटा।

मुझमें भी कुछ मानवीय गुण आ गए हैं। मैं तुम्हें अपना बेटा मानती हूं। इसलिए मैं तुझे बासी खाना दे देती हूं। लेकिन तुम्हारे दोस्त को देखती हूं, तो वह मुझे अतिथि प्रतीत होता है। ऐसे में अतिथि को बासी खाना कैसे दिया जा सकता है। जिस दिन तुझमें बेटे की छवि नहीं दिखेगी, उस दिन मैं तुझे ताजा खाना ही दिया करूंगा। वैसे यह बात उन्होंने अपनी मां से मजाक में कही थी, लेकिन उनकी इस सीख को आचार्य विनोबा भावे ने जीवन भर याद रखा।

  • अशोक मिश्र
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