सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोलर बॉन्ड की वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही है,पिछले आठ साल से यह मामला कोर्ट में लंबित है। याचिका में योजनाओं को चुनौती देने वाली चंदा देने वाली की पहचान गुप्त रखने को लेकर सवाल उठाए गए हैं याचिककर्ताओं का कहना है कि इस तरह काले धन को बढ़ावा मिल सकता है।
तो वहीं योजना को लेकर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि इसे बड़े कारोबारी को उनकी पहचान बताएं बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाया गया था।
एक नवंबर को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्य बेंच ने सुनवाई की,मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि ऐसा क्यों है कि जो पार्टी सत्ता में है उसे ज्यादा चंदा मिलता है? चीफ जस्टिस के इस सवाल के जवाब में सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि चंदा देने वाला हमेशा किसी पार्टी की मौजूदा हैसियत से ही चंदा देता है।
कौन सी पार्टी को पांच सालों में इलेक्टोलर बॉन्ड के जरिए कितना चंदा मेरा लिए जानते हैं—
चुनाव आयोग को सियासी पार्टियों की तरफ से जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक पांच सालों में इलेक्टोलर बॉन्ड के जरिए लगभग 10000 करोड़ रुपए का फंड दिया गया इसमें से आधे से ज्यादा राशि इलेक्टोलर बॉन्ड के जरिए भाजपा को मिली कांग्रेस को मात्र 9529 करोड़ मिले यह आंकड़ा 2017 2018 और 2021 और 2022 तक का है।
तो वहीं मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 2018 और 2021 और 2022 के दौरान भारतीय स्टेट बैंक के कुल 9,208.23 करोड़ की कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री हुई है,इसमें भारतीय जनता पार्टी को कल 5271.97 करोड़ रुपए की फंडिंग हुई तो वहीं कांग्रेस को 952.9 करोड रुपए का चंदा मिला।
इसके अलावा टीएमसी,बीजेडी और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियों को जो लंबे वक्त से प्रदेशों की सत्ता पर काबिज हैं,उन्हें भी चुनावी बॉन्ड के जरिए अच्छी खासी रकम मिली है।
ममता बनर्जी की टीएमसी को 767.88,उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को 622 करोड़ और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की द्रविड़ मुनेत्र काषगम को 431.50 करोड़ की फंडिंग हुई, तो दिल्ली की बात की जाए तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 48.83 करोड़ रुपए मिले और नीतीश कुमार की जनता दल को 24.40 करोड़ इलेक्टोलर बॉन्ड के जरिए मिले शरद पवार की एनसीपी को 51.5 करोड़ रुपए की फंडिंग हुई यह सारी फंडिंग इलेक्टोलर बॉन्ड के जरिए हुई।
साल 2018 में इलेक्टोलर बॉन्ड योजना को कानूनी तौर से लागू किया गया था लागू करते वक्त सरकार ने यह तर्क दिया कि इसे राजनीतिक दलों को जो फंडिंग होगी,उसमें ट्रांसपेरेंसी आएगी।
इलेक्टोलर बॉन्ड पॉलिटिकल पार्टियों को फंड देने का वित्तीय जरिया है। हर साल जनवरी, अप्रैल,जुलाई और अक्टूबर महीने में दस दिनों की अवधि के लिए भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखों पर चुनावी बॉन्ड की बिक्री होती है इसे कोई भी व्यक्ति बॉन्ड खरीद कर अपनी मर्जी से किसी भी पार्टी को दे सकता है। हालांकि उस नागरिक की पहचान को गुप्त रखा जाता है। बॉन्ड खरीदने के 15 दिन के अंदर इसका इस्तेमाल करना होता है। अलग-अलग कीमत के इलेक्टोलर बॉन्ड उपलब्ध करवाए जाते हैं उनकी कीमत ₹1000 ₹10,0000 एक लाख रुपए और एक करोड़ रुपए की होती है।