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भारत और मालदीव के बीच क्‍यों हुई कड़वाहट

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मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्‍जू ने हाल ही में कहा था कि भारतीय सेना को उनके देश से जाना होगा।

उनका कहना था कि मैं नागरिकों की इच्छा के खिलाफ विदेशी सेना को अपने देश में रहने देने के पक्ष में नहीं हूं। गौरतलब है कि चीनी समर्थक माने जाने वाले मोहम्मद मोइजु के बयान पर भारत की तरफ से भी जवाब दिया गया मगर यह जवाब सकारात्मक रहा।

भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से कहां गया कि मालदीव की नई सरकार के साथ भारत हर मुद्दे पर बात करने के लिए उत्साहित है,विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने से जब मोहम्मद मोइजु के भारतीय सेना के मालदीव छोड़ने वाले बयान को लेकर सवाल किया गया तो उनका कहना था कि भारतीय उच्चायुक्त ने मोहम्मद मोइजु से मुलाकात की इसमें आपसी सहयोग और द्विपक्षीय संबंधों पर बात हुई। तो फिर सवाल यह उठता है कि आखिर भारत मालदीव के रिश्तों के बिगड़ने की शुरुआत कैसे हुई।

पाकिस्तान और चीन को अगर छोड़ भी दे तो भारत के अपने सभी पड़ोसी मुल्कों से संबंध अच्छे हैं। अगर मालदीव देश की बात की जाए तो भारत के संबंध पुराने और अच्छे रहे हैं हालांकि 2018 के वक्त दोनों देशों के बीच रिश्तो में कड़वाहट जरूर आई थी फरवरी 2018 में मालदीव की सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा था कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने विपक्ष नेताओं को कैद करवरकर संविधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों को तोड़ा है।

गौरतलाप है कि अब्दुल्ला यामीन ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नासिर समेत सभी विपक्षी नेताओं को कैद करवा दिया था,उन्हें भारत का समर्थक भी माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि अब्दुल्ला यामीन को सभी नेताओं को रिहा करना होगा। वहीं अब्दुल्ला यामीन ने यह कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला वह नहीं मानने वाले हैं,उन्होंने मालदीव्स में इमरजेंसी का ऐलान भी कर दिया था 45 दिनों तक चले आपातकाल के विरोध में भारत खड़ा रहा।

मालदीव में चल रहे इस घटनाक्रम के कारण भारत और चीन दोनों ही परेशान हुए। यामीन ने अपने दूतों को चीन पाकिस्तान और सऊदी अरब भेज दिया। हैरानी की बात यह थी कि उनके वहां पहुंचने के तुरंत के बाद चीन का बयान आया कि मालदीव में किसी को दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। हालांकि कुछ वक्त बाद उसने खुद ही मालदीव की तरफ अपने जहाज भेजना शुरू कर दिए और भारत ने इसकी पुष्टि भी की।

भारत ऐतिहासिक तौर से मालदीव की मदद करता रहा है। 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेज कर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। साल 2018 में जब पानी का संकट मालदीव पर गहराया तो भारत में ही मालदीव को पानी पहुंचाया और यही कारण था कि मोहम्मद नासिर ने भारत से मदद की गुहार लगाई। भारत अपनी विदेश नीति के चलते अपने सैनिकों को तो नहीं वहां भेज पाया लेकिन उसने कड़े शब्दों में आलोचना की और इमरजेंसी खत्म करने की मांग की।

माना यही जा रहा है कि तभी से दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने की शुरुआत हुई। भारत के लिए चिंता की बात यह रही कि मोहम्मद मूईजू चीनी समर्थक नेता है। चीन को मालदीव ने एक द्वीप भी लीज पर दिया हुआ है,भारत को यही लगता है कि अगर चीन की मौजूदगी यहां होती है तो उसके लिए खतरे की बात हो जाएगी अगर भारतीय सैनिकों की मौजूदगी भी मालदीव से खत्म हो जाती है तो यह हमारे लिए दोहरी चिंता की बात होगी।

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