नामांकन करने के लिए बस तीन दिन बचे हैं। राजनीतिक दलों में जिस तरह आपाधापी मची हुई है, उससे लगता है कि इस बार कई विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी पार्टियों का खेल बिगड़ेगा। सबसे ज्यादा खेल बिगाड़ने में बगावत करके चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी होंगे। भाजपा और कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने की वजह से बगावती तेवर अख्तियार किए हुए बीस से अधिक नेताओं ने निर्दलीय ताल ठोकने का फैसला किया है। स्वाभाविक है कि ये बागी नेता अपने पुराने दल के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे। इससे भाजपा और कांग्रेस में हड़कंप मचा हुआ है। भाजपा में जिस तरह का अंसतोष इस बार देखने को मिल रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया है। ऐसा नहीं है कि बगावत सिर्फ भाजपा और कांग्रेस में ही देखने को मिल रही है, जजपा और इनेलो में भी नेता बागी हो रहे हैं। हालांकि इन दलों के बारे में राजनीतिक हलके में बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है। सबकी निगाहें भाजपा और कांग्रेस की ओर ही लगी हुई है। भाजपा की जारी हुई उम्मीदवारों की सूची में सबको संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है। भाजपा ने पहली सूची में सबसे ज्यादा ओबीसी समुदाय को प्रमुखता दी है। कुल उम्मीदवारों में 20 प्रतिशत ओबीसी को टिकट दिया गया है। इसके बाद नंबर जाटों का है। जाट समुदाय को साधने के लिए 19 प्रतिशत जाट उम्मीदवार बनाए गए हैं। इतने ही उम्मीदवार दलित समुदाय से भी चुने गए हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को महत्व दिया गया है। ब्राह्मण समुदाय से 13 प्रतिशत और 12 प्रतिशत पंजाबी समुदाय को टिकट दिया गया है। कांग्रेस ने जाट समुदाय को ज्यादा महत्व दिया है। उसने तीनों सूचियों में जाट और एससी को बराबर-बराबर लगभग 28 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया है। कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले में ओबीसी समुदाय के उम्मीदवार ज्यादा उतारे हैं। कांग्रेस के 22 प्रतिशत ओबीसी प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को एक भी टिकट नहीं दिया है, जबकि कांग्रेस ने तीन मुस्लिम भी चुनाव में उतारे हैं। महिलाओं के मामले में कांग्रेस ने बाजी मार ली है। कांग्रेस ने 15 प्रतिशत और भाजपा ने 12 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया है। भाजपा और कांग्रेस की बाकी सूचियां जारी होने के बाद सभी आंकड़ों में परिवर्तन हो सकता है, लेकिन अभी तक जो सूचियां सामने हैं, उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि भाजपा ने मुसलमानों को छोड़कर बाकी सबको साधने का प्रयास किया है, वहीं कांग्रेस ने इस बार जाटों में सेंध लगाने के लिए उन्हें प्रमुखता प्रदान की है। अब देखना यह है कि इस बार विधानसभा चुनाव में किसकी रणनीति कितनी सफल रहती है। दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों ने अपनी कमर कस ली है। अपनी-अपनी सेनाएं लेकर चुनावी क्षेत्र में उतर आए हैं।
संजय मग्गू