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भारत में कोई भी बच्चा भूख के कारण शिक्षा से वंचित न रहे

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भूख से लड़ता संगठनः अक्षय पात्र फाउंडेशन
-देवेंद्र गौतम

अक्षय पात्र फाउंडेशन आज कक्षा में उपजती भूख के खिलाफ जंग लड़ता विश्व का सबसे बड़ा संगठन बन गया है। संस्था का उद्देश्य यही है कि देश में कोई भी गरीब बच्चा भूख की वजह से अपनी पढाई नहीं छोड़े। 2024 तक इसने 4 बिलियन थाली परोसने का रिकार्ड बना लिया था जिसका जश्न संयुक्त राष्ट्र संघ में मनाया गया था। अब यह 5 अरबवीं थाली परोसने की तरफ तेज़ी से अग्रसर है। आज इस संस्था के जरिए भारत के 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में 77 स्वचालित अत्याधुनिक रसोइयों का संचालन किया जा रहा है। इनके द्वारा 22 लाख से अधिक बच्चों को नियमित मध्याह्न भोजन कराया जा रहा है। कुछ चलायमान रसोइयां भी हैं जिनका उपयोग आपदाग्रस्त क्षेत्रों में प्रभावित लोगों को तत्काल भोजन कराने के निमित्त किया जाता है। कोरोना काल में फाउंडेशन ने लॉकडाउन की पूरी अवधि तक लाखों की आबादी के बीच भोजन की थालियां परोसने का काम किया। किसी भी आपदा की खबर मिलने पर फाउंडेशन के लोग तत्काल पीड़ित लोगों की मदद के लिए राशन और चलायमान रसोइयों के साथ पहुंच जाते हैं। संस्था ने महाकुंभ 2025 में भी श्रद्धालुओं को भोजन कराने के लिए इसी चलायमान रसोइयों का प्रयोग कर लाखों लोगों को भोजन पहुंचाने का पुणित कार्य किया। अक्षय पात्र फाउंडेशन के रसोइयों के संचालन और भोजन की थालियों के वितरण के कार्य में 400 सेवादार और 9000 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं। शुद्ध और पौष्टिक भोजन मिलने का बच्चों की सीखने की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव प़ड़ा है। कर्नाटक सरकार ने एक अध्ययन कराया था जिसमें पाया गया कि पौष्टिक मध्याह्न भोजन के कारण बच्चों की सीखने की क्षमता में 99.61 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। निल्सन.ओआरजी ने भी अपने सर्वेक्षण में पाया कि बच्चों की एकाग्रता और ग्राह्यता में आशाजनक बढ़ोत्तरी हुई है।

इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद ने निर्देश दिया था कि इस्कॉन मंदिर की 10 किलोमीटर की परिधि में किसी को भूखा नहीं रहने देना चाहिए। उनके निर्देश को अमली जामा पहनाने का काम इस्कॉन (बेगलुरु) के अध्यक्ष मधु पंडित दास ने किया। वे एक वैज्ञानिक पिता के वैज्ञानिक पुत्र थे। वे एक अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्होंने राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिभा खोज छात्रवृत्ति प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त की थी। इस प्रतियोगिता के सफल छात्रों को सभी आईआईटी और बिट्स पिलानी में बिना प्रवेश परीक्षा के दाखिला मिलता था। मधु पंडित दास ने आईआटी बॉम्बे को चुना और भौतिकी विज्ञान में पांच वर्ष के एकीकृत एमएससी के पाठ्यक्रम में दाखिला लिया। लेकिन उनका मन कक्षा से ज्यादा पुस्तकालय में लगता था। उनके मन में पदार्थ, जीवन और ब्रह्मांड को लेकर बहुत सारे प्रश्न थे लेकिन दिन रात के अध्ययन के बाद भी उनका जवाब नहीं मिलता था। एक बार बेहद मानसिक उलझनों के कारण उन्हें अपना जीवन निरर्थक लगने लगा और उन्होंने अपने एक सहपाठी के साथ संस्थान की छत से कूदकर जीवन का अंत कर लेने का निर्णय लिया। आत्महत्या के लिए उन्होंने जो दिन निर्धारित किया था उसके एक रात पहले कुछ हल्का पढ़ने के चक्कर में उन्होंने श्रील प्रभुपाद की एक पुस्तक उठा ली लेकिन उनके पृष्ठों से गुजरते हुए उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर मिलने लगे। उन्होंने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और प्रभुपाद के साहित्य में गहरे उतरते चले गए। परिणाम यह हुआ कि 1981 में वे इस्कॉन से जुड़ गए। छह महीने के अंदर ही उन्हें दीक्षा भी मिल गई। इसके बाद दो वर्षों तक वे दक्षिण भारत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भदवतगीता पर व्याख्यान देते रहे और इस्कॉन का साहित्य वितरित करते रहे।

1983 में मधु पंडित दास ने बेंगलुरु में इस्कॉन मंदिर की स्थापना का संकल्प लिया। शुरुआत दो बेडरूम के मकान से की और उपयुक्त स्थल की तलाश में जुट गए। राज्य सरकार ने उनके ट्रस्ट को इसके लिए एक परित्यक्त खदान आवंटित कर दी जो बंजर थी और जिसकी उसकी नज़र में कोई उपयोगिता नहीं थी। मधु पंडित दास नें अपनी वैज्ञानिक बुद्धि का उपयोग करते हुए जन सहयोग से 1997 में वहां 20 करोड़ की लागत से वर्तमान इस्कॉन मंदिर की स्थापना की। मंदिर बनने के बाद उन्होंने संकल्प लिया कि मंदिर में आने वाला कोई भी श्रद्धालु बिना प्रसादम भोजन ग्रहण किए नहीं जाएगा। यहीं से श्रील प्रभुपाद जी के निर्देश ने आकार लेना शुरू किया। इसी क्रम में वर्ष 2000 में एक दिन इंफोसिस के सीइओ अपने एक मित्र के साथ मंदिर में पहुंचे। उन्होंने मधु पंडित दास से कहा कि आप इतने लोगों को भोजन कराते हैं तो आसपास के सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन क्यों नहीं कराते। तमिल नाडू में एनटीआर ने ऐसा कार्यक्रम शुरू का था जो बेहद सफल रहा था। मधु पंडित दास ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उनके आग्रह पर इंफोसिस के सीइओ ने भोजन वितरण के लिए दो वाहन उपलब्ध कराए। शुरूआत में एक अलग रसोईघर बनाकर 10 टन भोजन तैयार कराने लगे और मंदिर के आसपास के पांच स्कूलों के 1500 बच्चों के बीच मध्याह्न भोजन वितरण कराने लगे। इसमे खासा खर्च आ रहा था लेकिन लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा था। धीरे-धीरे 10 हजार बच्चों को भोजन कराने की मांग आने लगी। इसके लिए रसोईघर का विस्तार किया गया और चार महीने के अंदर ही 10 हजार बच्चों को मध्याह्न भोजन वितरित किया जाने लगा।

तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी के सुझाव पर उन्होंने अक्षय पात्र फाउंडेशन के निबंधन की प्रक्रिया शुरू की। 2001 में संस्था का निबंधन हो गया। उसी वर्ष 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को पका हुआ मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का आदेश जारी किया। केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके लिए गैर सरकारी संगठनों को आमंत्रित किया। पंजीकृत होने के नाते अक्षय पात्र फाउंडेशन सरकारी सब्सिडी का पात्र बन गया। हालांकि सरकार प्रति थाली 3 रुपये देती थी जबकि फाउंडेशन की लागत प्रति थाली 5.50 रुपये पड़ती थी। अर्थात प्रति थाली 2.50 रुपये का घाटा होता था। 10 लाख बच्चों को भोजन कराने का लक्ष्य हासिल होने तक प्रतिदिन का घाटा 20 लाख रुपयों तक पहुंच गया था। इसकी भरपाई के लिए अमेरिका में चित्रांग चैतन्य दास के साथ एक ट्रस्ट का निबंधन कराया और घर-घर जाकर धन जुटाना शुरू किया। कुछ मिशनरी और कार्पोरेट का भी सहयोग मिलने लगा। ट्रस्ट में शामिल मिशनरियों के लिए इस्कॉन से जुड़े होने की कोई बाध्यता नहीं थी। वे सेवा भाव से जुड़ते थे।

वर्ष 2006 में आईटी सेक्टर में कार्यरत श्रीधर वेंकट इस कार्यक्रम से इतना प्रभावित हुए कि अपनी नौकरी छोड़कर अक्षय पात्र फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक बन गए। वे पेशेवरों की टीम का नेतृत्व करते हैं। मिशनरियों का नेतृत्व चंचलापति दास करते हैं। इस तरह धीरे-धीरे श्रील प्रभुपाद का आदेश और मधु पंडित दास की परिकल्पना ने अक्षय पात्र फाउंडेशन को भूख के खिलाफ विश्व के सबसे बड़े योद्धा संगठन के रूप में ला खड़ा किया जो मानव सेवा की दिशा में तीव्र गति के साथ बढ़ता चला जा रहा है। यह सचमुच पौराणिक कथाओं में वर्णित अक्षय पात्र बनता जा रहा है।

स्वतंत्र लेखन और गजलकार

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