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हरियाणा कि धाकड़ छोरी ने फिरंगियों को हराकर लहराया जीत का परचम, जाने कौन हैं ये बहादुर बिटिया ?

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एक ज़माना था जब कहा करते थे खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब , पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब , लकिन अब इस पंक्ति को गलत ठहराते हुए देश के खिलाडियों ने देश को एक अद्बुध पहचान देदी है।

आज भारत देश खिलड़ियों कि वजह से पूरी दुनिया में अपना दबदबा लगातार बढ़ाता जा रहा है। अबकी बार एक बेटी ने hindustan का सीना चौड़ा कर दिया है।

आइये आपको बताते हैं हाल ही में जीती इस खिलाड़ी कि पूरी जानकारी :-

देश की बेटियां Haryana प्रदेश का नाम केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी रौशन कर रही है। बेटियां दिन प्रतिदिन पूरी दुनियां में अपनी जीत का परचम लहराती नज़र आ रही हैं। जहाँ एक तरफ बेटियों को पाबन्दी की जंजीरो में बांध कर रखा जाता था वही दूसरी तरफ बेटियां आज उन जंजीरो को तोड़ कर खुले आसमान में उड़ान भर रही है। ऐसी ही एक बेटी जो Faridabad के छोटे गांव पाली से आई, जिसने अपने गांव का नाम न केवल अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में चकाचौंद कर दिया है।

बता दें , हम बात कर रहे है उस बेटी की जिसने छोटी सी उम्र में अपने गांव पाली का नाम Uzbekistan जैसे देश में रोशन कर दिखाया है। अपने गांव का नाम रोशन करने वाली इस बिटिया का नाम Arti Bhadana है, जिसने डेढ़ साल पहले Race Walk की तैयारी की थी। इसकी उम्र मात्र 16 वर्ष है। यह बिटिया पाली गांव की रहने वाली है। इसने पांचवी Asian Athletics Championships जो की उज्बेकिस्तान में चल रही थी उसमे में ब्रांज मेडल जीत कर अपनी जीत का परचम लहराया है।

पिता का क्या कहना ?

जब यह बात आरती के पिता तक पहुंची तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। आरती के पिता जी का नाम जगत भडाना है जिसने जानकारी देते हुए बताया की वह अपनी बेटी की जीत से बहुत खुश है। इतनी कम उम्र में बेटी ने बहुत नाम कमा लिया है साथ ही उन्होंने जानकारी देते हुए बताया की इससे पहले भी नेशनल स्तर पर हुई खेल प्रतियोगिता में भी गोल्ड हासिल किया है ।

उन्होंने यह भी बताया की अब उनकी बेटी ने एशियन एथलेटिक्स प्रतियोगिता उज्बेकिस्तान में 5 km की रेस वाक में ब्रोंज मेडल जीता है। इससे पहले वह लॉन्ग जम्प की प्रैक्टिस करती थी लेकिन बड़ी बहन से प्रेरणा ले कर उन्होंने इस गेम को कुछ समय पहले ही खेलना शुरू किया था और आज आरती की मेहनत रंग लाई।

पिता का यह भी कहा कि बेटी बेटो से कम नहीं होती उनको भी सामन्य दर्जा देना चाहिए।ताकि वह आगे बढ़ सके और अच्छा मुकाम हासिल कर सकें।

हरियाणा के छोरे ही नहीं बल्कि छोरियों ने भी पूरी दुनियां में लगातार जीत का डंका बजाकर नाम रौशन कर रहीं हैं। ऐसे में ऐसी जीत के बाद लोगों के बीच एक प्रेरणा का स्त्रोत उत्पन्न होता है जिसकी देखादेख अन्य खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहन मिलता है। अब लोगों कि मानसिकता भी बदल चुकी है अब पढाई के साथ साथ खेल कूद को भी बराबर का हक़दार बनाया जा रहा है।

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