हमेशा सियासी नफा-नुकसान देखने के बाद ही किसी मसले पर कदम उठाने वाली रणनीति कभी-कभी बहुत भारी पड़ती है। महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों पर चुप्पी और आरोपी बृजभूषण सिंह को खुला संरक्षण आने वाले समय में केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व पर भारी पड़ने वाला है। अब तो यह तय हो गया है कि महिला पहलवानों के आरोपों में सच्चाई है, दम है। और, वे इसी के बलबूते मैदान में टिकी हुई हैं। वजह समझ में नहीं आ रही है कि दिल्ली पुलिस जांच को इतना खींच क्यों रही है और किसके इशारे पर? पहलवानों को डराए-धमकाए जाने की खबरें आ रही हैं कि वे समझौता कर लें।
स्थिति का बदतरपन यह कि अपनी खेल प्रतिभा के बलबूते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश-प्रदेश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। वहीं, भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) के निवर्तमान अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह खुद पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद खुलेआम बयानबाजी करते घूम रहे हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। मालूम हो कि बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट से भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, पार्टी में उनका अच्छा-खासा रसूख है और अपने संसदीय क्षेत्र से लगी आठ से दस लोकसभा सीटों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है।
यही वह खास वजह है कि केंद्र सरकार एवं भाजपा हाईकमान ने महिला पहलवानों के मसले पर खामोशी अख्तियार कर रखी है, क्योंकि साल 2024 का लोकसभा चुनाव ड्योढ़ी पर दस्तक दे रहा है। लेकिन, भाजपा नेतृत्व इस बिंदु पर सोचने की जहमत नहीं उठा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब को मिलाकर तकरीबन 40 सीटें जाट बाहुल्य हैं, जहां के रहवासी एवं किसान महिला खिलाड़ियों के साथ हुई नाइंसाफी और उस पर केंद्र सरकार की चुप्पी से खार खाए बैठे हैं।
बृजभूषण तो लोकसभा चुनाव में सिर्फ आठ-दस सीटें प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन जाट लैंड के मतदाता आपको समूची सत्ता से बाहर कर देने की क्षमता रखते हैं। अब लगा लीजिए, नफा-नुकसान का गणित और कर लीजिए फैसला अपने सियासी भविष्य का! अभी मौका है!!
संजय मग्गू