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कीमती तलवार से ज्यादा अच्छी सुई

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बाबा फरीद का जन्म 11 73 ईस्वी में पंजाब में हुआ था। वह पंजाबी भाषा के प्रसिद्ध कवित थे। उनकी ढेर सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहीत की गई हैं। दिल्ली में आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद शेख फरीद हिसार जिले के हांसी नामक कस्बे में आकर रहने लगे थे। शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मृत्यु के बाद वे खलीफा नियुक्त किए गए। कहते हैं कि इन्हें दिल्ली का रहन-सहन पसंद नहीं था। तो उन्होंने पहले हांसी, फिर खोतवाल और उसके बाद शरीफ पटन जो आजकल पाकिस्तान में है, वहां अपना निवास बनाया। पंजाब का फरीदकोट जिला इन्हीं के नाम पर है।

एक बार की बात है। एक राजा बेशकीमती तलवार लेकर बाबा फरीद के पास पहुंचा। उसने अहंकार भरे स्वर में कहा कि बाबा! मैं आपके लिए एक बेशकीमती तलवार भेंट देने आया हूं। आप स्वीकार करें। इसमें काफी हीरे-जवाहरात भी जड़े हैं। बाबा फरीद उसके अहंकार को समझ गए। वह राजा बहुत अहंकारी था। वह अपनी प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था, लेकिन बाबा फरीद का वह मुरीद था। उन्होंने कहा कि यदि तुम विनम्रता के साथ सुई लाए होते, तो बेहतर था। मैं इस तलवार का क्या करूंगा। एक सुई ऐसी सौ कीमती तलवार से ज्यादा उपयोगी है।

यह सुनकर राजा दंग रह गया। उसने पूछा कि बाबा, एक सुई ऐसी सौ तलवारों से कैसे कीमती हो सकती है। बाबा ने कहा कि तलवार चाहे साधारण हो या कीमती, वह इंसान को काटने के काम आती है। इंसान की हत्या करने वाली तलवार से कहीं ज्यादा अच्छी सुई होती है, जो चीजों को जोड़ने का काम करती है। विनम्रता और सुई लोगों और वस्तुओं को जोड़कर उन्हें जीन सिखाती है। यह सुनकर राजा समझ गया कि बाबा फरीद उसे क्या समझाना चाहते हैं। यह सुनकर उसका अहंकार मिट गया। उसने बाबा फरीद से क्षमा मांगी और बाद में वह राजा सबसे दयालु शासक के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

-अशोक मिश्र

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