युद्धकिसके हित में है? युद्ध से किसको फायदा होता है? आज के दौर का सबसे अहम सवाल यही है। दुनिया में दो जगहों पर तो इन दिनों खुलकर युद्ध का नगाड़ा बजा हुआ है। रूस-यूक्रेन और इजराइल-गाजा, इन दोनों युद्ध स्थलों पर अरबों-खरबों डॉलर के हथियार स्वाहा किए जा रहे हैं। हजारों लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं, मरने वालों से कई गुना ज्यादा संख्या तो घायलों की है। लाखों लोग युद्ध के चलते विस्थापित हो रहे हैं। लेकिन युद्ध है कि चल रहा है। सच पूछिए, तो युद्ध किसी भी काल में आम आदमी के हित में नहीं रहे हैं। सामंती युग में राजाओं और कबीलों के सरदारों के अहंकार, संपत्ति लालसा, राज्य विस्तार और नारियों की प्राप्ति के लिए युद्ध होते थे। इन युद्धों में आम जनता को मजबूरन भाग लेना पड़ता था। व्यवस्था बदली, सामंती व्यवस्था खत्म हुई, तो उसका स्थान पूंजीवादी व्यवस्था ने ले लिया।
पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत उत्पादित प्रत्येक उत्पाद का अंतिम लक्ष्य मुनाफा होता है। यह पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है, जो दुनिया के कुल हथियार निर्यात का 40 फीसदी निर्यात करता है। अमेरिका के बाद रूस दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है, जो 16 फीसदी हथियार निर्यात करता है। इनके बाद फ्रांस (11 फीसदी), चीन (5.2 फीसदी) और जर्मनी (4.2 फीसदी) का नंबर आता है। साल 2013 के बाद से अमेरिकी के हथियार निर्यात में 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं रूस के हथियार निर्यात में 31 फीसदी की कमी हुई है। पूंजीवादी अर्थशास्त्र का यह सामान्य सा नियम है कि किसी भी उत्पाद की सार्थकता तभी तक है, जब वह बिके। अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, जर्मनी जैसे देशों में बनने वाले हथियार अगर बिकेंगे नहीं, तो फिर उन्हें बनाने का क्या फायदा? इसलिए ये हथियार उत्पादक देश पहले दो देशों में विवाद पैदा कराते हैं।
पीछे से हथियार सप्लाई करते हैं और फिर युद्ध करा देते हैं। अगर आप रूस और यूक्रेन के साथ-साथ अभी हाल में शुरू हुए हमास-इजराइल युद्ध पर गौर करें, तो हमास के हमले के तुरंत बाद इजराइल और रूस-यूक्रेन हमले के समय यूक्रेन के साथ अमेरिका खड़ा हो गया था। इसका फायदा क्या हुआ? अमेरिकी, रूस, फ्रांस जैसे देशों को हथियार का बाजार मिल गया। रूस ने यूक्रेन युद्ध के बहाने अपने हथियारों की विध्वांसात्मकता जांच ली, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अपने घातक अस्त्र-शस्त्र बेच लिए। हथियारों का बाजार चल निकला।
अगर थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए कि पूरी दुनिया में शांति स्थापित हो जाए, किसी भी देश का किसी देश से सीमा विवाद न रहे, सभी अपने-अपने दायरे में रहकर काम-काज करें, आतंकवाद का नामोनिशान न रहे, तो हथियार उत्पादक देश कहां जाएंगे? ऐसी स्थिति में कौन सा देश इन हथियार उत्पादक देशों से विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र खरीदेगा। अगर नए-नए हथियार बनाने हैं, उन्हें बेचना है, तो इसके लिए जरूरी है कि दुनिया में कहीं न कहीं आतंकवाद जिंदा रहे, दो देशों में तनाव बरकरार रहे, कुछ देश युद्धरत रहें, तभी इन हथियार उत्पादक देशों का कारोबार फलता-फूलता रहेगा। यही इन युद्धों की निर्मम सच्चाई है।
_संजय मग्गू