समाज में औरतों को हमेशा से ही बंधनों में बांधकर रखा गया है। जिससे कि अगर उसके साथ किसी भी प्रकार की कोई हिंसा होती है तो वह अपने लिए न्याय के लिए लड़ने से भी डरती है। अगर वह कुछ कहती है तो समाज ही उसे गलत ठहरा कर चुप करा देता है। ऐसे में यदि किसी लड़की के साथ किसी प्रकार की हिंसा होती है तो वह इसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाती है।
यहां तक कि वह इसे किसी के सामने रखने से भी डरती है। बात चाहे शहर की हो या गांव की, सभी जगह महिलाएं स्वयं को शत प्रतिशत सुरक्षित नहीं मानती हैं। शहरों में जहां महिला हिंसा का अलग रूप देखने को मिलता है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक मान्यताओं के नाम पर महिलाओं के साथ सबसे अधिक हिंसा होती है। कभी उसे शारीरिक तो कभी मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। किशोरियों के साथ होने वाली हिंसा सबसे अधिक चिंता का विषय बनती जा रही है जिन्हें स्कूल या कॉलेज आते जाते समय कभी लड़कों तो कभी अन्य पुरुषों द्वारा फब्तियां और गंदे कमेंट्स का सामना करना पड़ता है।
अफसोस की बात यह है कि इस प्रकार का कृत्य जहां किशोरियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, वहीं दूसरी ओर यह समाज के नैतिक पतन की ओर इशारा भी करता है। शहरों में लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के कई अवसर मिल जाते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों के लिए यह आज भी अपेक्षाकृत काफी मुश्किल होता है। ऐसा ही एक ग्रामीण क्षेत्र है उत्तराखंड के बागेश्वर जिला अंतर्गत रौलियाना गांव। जहां लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई प्रकार की बाधाओं से गुजरना पड़ता है।
इस संबंध में नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर गांव की एक किशोरी बताती है कि 10वीं पास करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए किशोरियां राजकीय इंटर कॉलेज, मेगडी स्टेट में अपना नामांकन कराती हैं, जो रौलियाना से करीब सात किमी दूर है। यह इस गांव से सबसे करीब इंटर कॉलेज है। यह इंटर कॉलेज अन्य गांव जैसे जोड़ा स्टेट और पिंगलो से भी सबसे नजदीक है जिसके कारण इन सभी गांवों की लड़कियां यहीं पढ़ने आती हैं।
वह बताती है कि यहां पढ़ने वाली 90 प्रतिशत लड़कियां आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े परिवार से होती हैं। इसकी वजह से वह प्रतिदिन सात किमी पैदल चलकर आती हैं। यह शिक्षा के प्रति इनके लगन और मेहनत को दर्शाता है। लेकिन लड़कियों के प्रति मानसिक रूप से पिछड़े समाज की सोच और कमेंट्स उनके मनोबल को तोड़ देती हैं। एक अन्य किशोरी बताती है कि अपने खिलाफ होने वाली इस हिंसा को हम लड़कियां व्यक्त भी नहीं कर पाती हैं। न तो हम इस संबंध में अपनी शिक्षिका से कह पाती हैं और न ही हम घर में इसकी शिकायत कर पाती हैं।
हमें ऐसा लगता है कि इससे हमारे ही परिवार की बदनामी होगी और हमारी पढ़ाई रुकवा दी जाएगी। हमने देखा है कि यदि कुछ लड़कियां हिम्मत करके इसके खिलाफ आवाज उठाती भी हैं स्वयं परिवार भी उनका साथ देने की जगह इसका दोष उन्हीं लड़कियों पर डाल दिया जाता है। कई परिवारों ने ऐसी घटना के बाद लड़की का इंटर कॉलेज जाना ही बंद करवा दिया। वह सवाल करती है कि आखिर इसमें उस लड़की का क्या दोष होता है? क्यों परिवार उसका साथ देने की जगह उसे ही शिक्षा से वंचित कर देता है?
एक अन्य लड़की बताती है कि उसे पढ़ने, आगे बढ़ने और अपने पैरों पर खड़ा होने का ख्वाब था। यही कारण है कि दसवीं के बाद उसने बड़े उत्साह से राजकीय इंटर कॉलेज, मेगड़ी स्टेट में नामांकन करवाया था। लेकिन जब वह कॉलेज आने जाने लगी तो आये दिन लड़के और लोग अश्लील टिपण्णी तो कभी भद्दे कमेंट्स करने लगे। जिसकी शिकायत जब उसने कॉलेज में की तो उल्टा उसे ही दोषी ठहराया जाने लगा। उसे संभल कर आने जाने की नसीहत दी जाने लगी। उसने जब घर में इसकी शिकायत की तो उसे उम्मीद थी कि परिवार उसका साथ देगा, लेकिन यहां भी उसे ही इन सबके लिए दोषी माना जाने लगा। (चरखा)
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
-पूजा गोस्वामी