राहुल गांधी इन दिनों अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके इस दौरे को निजी बताया जा रहा है। डलास और वाशिंगटन डीसी में दिए गए उनके बयान को लेकर भारत में एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है। भाजपा राहुल गांधी को कुंठाग्रस्त और देश विरोधी बताने से भी नहीं चूक रही है। राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा में कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव पर अपने विचार व्यक्त किए। राहुल गांधी ने इस साल हुए लोकसभा चुनाव को नियंत्रित चुनाव बताकर केंद्रीय चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। उन्होंने भारत-चीन की उत्पादकता पर अपनी बात रखी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी तीखे वार किए। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा पर पूरे देश में डर का माहौल पैदा करने का भी आरोप लगाया। आरएसएस को लेकर भी उन्होंने अपनी विदेशी यात्रा के दौरान काफी तल्ख विचार रखे। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने विदेशी धरती पर सरकार और राजनीतिक दलों की आलोचना करने को निंदनीय माना है। भारतीय राजनीति सचमुच एक नए दौर में प्रवेश कर रही है।
इसकी शुरुआत पिछले दस साल में हुई है। हमारे देश में कभी ऐसा नहीं हुआ कि विदेशी धरती पर सत्तापक्ष ने विपक्ष और विपक्ष ने सत्ता पक्ष की आलोचना की हो। जब पीवी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने विपक्ष में रहते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र में भेजा था। भारत के पहले प्रधानमंत्री से लेकर पीवी नरसिंहाराव और मनमोहन सिंह तक ने विदेश में अपने देश के विपक्ष की आलोचना नहीं की। विपक्ष में रहते हुए भी दलों ने विदेश में सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, लेकिन सन 2014 के बाद हालात बदल गए। सरकार ने विदेशी धरती पर जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक की आलोचना की। खुलेआम दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में कहा गया कि पहले मुझे और तमाम लोगों को शर्म आती थी कि कैसा देश है यह जहां हम पैदा हो गए।
जरूर पिछले जन्म में कोई पाप किए होंगे, लेकिन अब हमें गर्व है। पिछले कुछ सालों में सत्ता पक्ष के नेता भी विदेशों में जाकर देश पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की आलोचना करते हुए कहते रहे हैं कि पिछले 70 सालों में भारत में कुछ नहीं हुआ था। जो कुछ हो रहा है या हुआ है वो सिर्फ़ उनके दल यानी बीजेपी की सरकार बनने के बाद संभव हो पाया है। अमेरिका में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का दिया गया बयान सचमुच निंदनीय है। उन्हें जो कुछ भी कहना था, देश में रहते हुए कहते। लेकिन सत्ता पक्ष की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने देश की पुरानी सरकारों की मर्यादा विदेश में बनाए रखे। सच कहा जाए, तो पिछले कुछ सालों से हमारे देश का लोकतंत्र शोरयुग में प्रवेश कर गया है। जो जितना शोर मचा रहा है, वही उतना बड़ा नेता माना जा रहा है। किसी को भी सच्चाई और तथ्यों से कुछ लेना देना नहीं है। बस, अपनी प्रशंसा की ढोल ही राजनीति हो गई है।
-संजय मग्गू