दलित और आदिवासी संगठनों ने बुधवार को भारत बंद(Bharat Bandh: ) का आह्वान किया है, जिसमें हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग की गई है। यह बंद ‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन्स’ (एनएसीडीएओआर) के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है। संगठन ने अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी), और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए न्याय और समानता की मांगों की एक सूची जारी की है।
Bharat Bandh:सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध
एनएसीडीएओआर ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए एक फैसले के प्रति विरोध जताया है। संगठन का मानना है कि यह फैसला ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा स्थापित आरक्षण की रूपरेखा को कमजोर करता है। इंदिरा साहनी मामले में लिए गए फैसले ने भारत में आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था को मजबूत किया था, जिससे एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के अधिकार सुरक्षित रहे। एनएसीडीएओआर का दावा है कि नया फैसला इन संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालता है और इसके परिणामस्वरूप इन समुदायों के हितों की उपेक्षा हो सकती है।
एक नया आरक्षण कानून बनाने की मांग
संगठन ने सरकार से इस फैसले को खारिज करने का आग्रह किया है, ताकि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो सके। इसके साथ ही, एनएसीडीएओआर ने संसद से एससी, एसटी और ओबीसी के लिए एक नया आरक्षण कानून पारित करने की मांग की है। संगठन चाहता है कि यह कानून संविधान की नौवीं सूची में शामिल किया जाए, जिससे इसे कानूनी संरक्षण प्राप्त हो और इसे चुनौती देना मुश्किल हो जाए।
मजबूत आरक्षण व्यवस्था जरूरी
भारत बंद का आह्वान, इन मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया गया है। एनएसीडीएओआर के अनुसार, यह कदम देश में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक है और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए एक मजबूत और स्थायी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा। संगठन का मानना है कि बिना मजबूत आरक्षण व्यवस्था के, इन समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करने की दिशा में किए गए प्रयासों को गंभीर धक्का लग सकता है। इस बंद के माध्यम से, वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी एकजुटता और संघर्ष को प्रदर्शित कर रहे हैं।