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भाजपा-कांग्रेस के सामने संकट, सीट रूपी ‘अनार’ एक है और बीमार सौ

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भाजपा और कांग्रेस के लिए विभिन्न दलों से बगावत करके आए नेता गले की फांस बनते नजर आ रहे हैं। मतदाताओं में अपनी पकड़ और धमक दिखाने के लिए दूसरे दलों के बागी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल तो कर लिया, अब वही बागी नेता एक संकट के रूप में सामने आ गए हैं। इन दोनों दलों की हालत सांप-छछूंदर जैसी हो गई है जिसे न निगलते बन रहा है और न उगलते। यह तो जगजाहिर है कि कोई भी नेता जब बागी होकर दूसरे दल में जाता है, तो वह यही सोचकर जाता है कि उसे चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधान सभा, टिकट जरूर मिलेगा। कुछ ही नेता या कार्यकर्ता ऐसे होते हैं जो बिना किसी कामना के दलबदल करते हैं।

अब भाजपा और कांग्रेस के सामने दिक्कत यह है कि प्रदेश में विधानसभा की कुल सीटें नब्बे हैं और पार्टी के पुराने और कर्मठ नेताओं और बगावत करके नए-नए पार्टी में आए नेताओं की संख्या कई सौ है। माहौल बनाने और विरोधी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए उन्हें अपनी पार्टी का पटका तो पहना दिया, लेकिन अब उन्हें कहां खपाएं, यह बड़ी समस्या है। कांग्रेस में तो लगभग 50 पूर्व विधायक और विभिन्न संस्थाओं के चेयरमैन शामिल हो चुके हैं। सभी टिकट की आस लगाए हैं। अब सबको तो विधानसभा का टिकट दिया नहीं जा सकता है। ऐसे में कुछ लोग चुनाव के दौरान ही और कुछ चुनाव के बाद फिर दलबदल कर सकते हैं। ठीक यही हाल भाजपा का है। कोई भी दल अपने केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। जो केंद्रीय नेतृत्व फैसला करेगा, उसे मानना ही होगा।

भाजपा में प्रदेश संगठन और आरएसएस मिलकर हर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशियों का एक पैनल केंद्रीय नेतृत्व को सौंपेगा। अब केंद्रीय नेतृत्व किस पर मोहर लगाता है, यह कोई नहीं कह सकता है। कांग्रेस में भी तीन-तीन या एक-एक नाम केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी आदि मिलकर तय करेंगे कि किसको टिकट दिया जाए। दोनों दलों में प्रत्याशियों के चयन की एक कठिन प्रक्रिया और शर्तें हैं। दोनों दल अधिक से अधिक उन लोगों को टिकट देना चाहेंगे जिनके जीतने की गारंटी हो।

ऐसी स्थिति में जिसे टिकट नहीं मिलेगा, वह या तो बेमन से पार्टी उम्मीदवार की मदद करेगा या फिर भीतर ही भीतर अपने ही दल के प्रत्याशी को वह और उसके समर्थक हराने की कोशिश करेंगे। हालांकि ऐसा होने की आशंका बहुत कम है, लेकिन ऐसा होगा जरूर। ऐसी स्थिति से बचने के लिए राजनीतिक दलों को किसी भी नेता अपने में शामिल करते समय साफ कर देना चाहिए कि जब भी चुनाव होंगे, वह टिकट की दावेदारी कर सकता है, लेकिन प्राथमिकता पुराने नेता को ही दी जाएगी।

-संजय मग्गू

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