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इजरायल-हमास युद्ध का नया अखाड़ा बनता ब्रिक्स संगठन

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इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध का प्रभाव अब वैश्विक संस्थाओं पर पड़ने लगा है। एक दिन पहले ही यानी मंगलवार को ब्रिक्स देशों की बैठक हुई। बैठक इस मायने में असाधारण रही कि ग्लोबल साउथ के सभी देशों ने इसमें वर्चुअल भाग लिया। इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति पुतिन आए, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल हुए, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान शामिल हुए, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल नहीं हुए।

इस बात को लेकर वैश्विक मंचों पर खूब चर्चा हो रही है। राजनीतिक हलके में माना जा रहा है कि ब्रिक्स के ज्यादातर देश इजरायल के खिलाफ हैं। वे तत्काल युद्ध विराम की मांग कर रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने तो ब्रिक्स की बैठक के दौरान यहां तक कहा कि इजरायल-हमास युद्ध के लिए अमेरिका की नाकाम कूटनीति जिम्मेदार है। वहीं, सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने गाजा पर तुरंत इजरायली हमले रोकने और मानवीय मदद पहुंचाने की मांग की।

इस वर्चुअली बैठक की मेजबानी और अध्यक्षता करने वाले दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरील रामपोसा ने इसराइल पर युद्ध अपराधों और नरसंहार के आरोप लगाये हैं। वहीं ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने ब्रिक्स देशों से इसराइल सरकार और सैन्य बलों को ‘आतंकवादी’ घोषित करने की मांग की। दरअसल, पीएम मोदी के इस बैठक में भाग न लेने के कुछ कारण हैं।

पहली बात तो यह है कि सात अक्टूबर को जब हमास ने इजरायल पर हमला किया था, तो भारत ने तत्काल इस हमले की निंदा करते हुए इजरायल के साथ खड़े होने की बात कही थी। जब भी इजरायल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर कोई बात हुई है, तो वह इजरायल के पक्ष में खड़ा नजर आया है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने संघर्ष विराम के मुद्दे पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया था। जब भी इजरायल-हमास की बात उठती है, भारत ने गाजा में मानवीय मदद की बात उठाई है।

हालांकि पीएम मोदी इस बात को भी स्पष्ट कर चुके हैं कि फिलिस्तीन राष्ट्र के मामले में उनका रुख पहले जैसा ही है। दो राष्ट्र का समाधान ही सर्वोत्तम समाधान है। संयुक्त राष्ट्र में जब युद्ध विराम का प्रस्ताव पेश किया गया था, तब भारत को छोड़कर ब्रिक्स देशों के बाकी दस सदस्य फिलिस्तीन के पक्ष में खड़े थे। यही वजह है कि भारत ने मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी में हुए वर्चुअल बैठक में भाग लेना उचित नहीं समझा।

माना जाता है कि ब्रिक्स पर चीन और रूस का विशेष प्रभाव है। सितंबर में जब भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन हुआ था, तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भाग नहीं लिया था। ऐसी स्थिति में ब्रिक्स बैठक में भारत शामिल नहीं हुआ क्योंकि इसमें चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग शामिल हो रहे थे। वैसे भी ब्रिक्स इन दिनों हमास-इजरायल युद्ध को लेकर अखाड़ा बना हुआ है। इजरायल के विरोध में ब्रिक्स देश एकजुट हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत का  इस बैठक में शामिल न होना ही उचित प्रतीत होता है।

-संजय मग्गू

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