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बीएसपी भी फंस गई वंशवाद के दलदल में

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यों तो देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था है, लेकिन देश की अधिकांश सियासी पार्टियां वंशवाद की उर्वरा माटी में आज भी पुष्पित-पल्लवित हो रही हैं। दक्षिण से लेकर उत्तर तक ऐसी ही पार्टियों का बोलबाला है। क्या बड़ी, क्या छोटी, क्या राष्ट्रीय और क्या क्षेत्रीय, कोई भी पार्टी आज इससे अछूती नहीं है। लेकिन इन सबसे इतर बीएसपी ही ऐसी पार्टी थी जिसकी नींव रखने वाले कांशीराम ने अपने नाते-रिश्तेदारों को छोड़ मायावती पर भरोसा जताया और उन्हें पार्टी बीएसपी की कमान सौंपी थी।

कई बार उत्तर प्रदेश जैसे सूबे में सरकार चला चुकी बीएसपी की स्थापना जिस वंशवाद से इतर की गई थी, वह भी अब इसकी शिकार हो गई है। रविवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने वंशवाद के आरोपों की परवाह किये बगैर अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

इस अनापेक्षित घोषणा के बाद अब एक बार फिर वंशवाद की सियासत पर चर्चा शुरू हो गई है। चर्चा यह हो रही है कि देश के अन्य सियासी पार्टियों की राह पर अब बीएसपी ने भी पाँव बढ़ा दिया है। सियासी जानकारों का मानना हैं कि इसने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और जनता को सोचने का विषय दे दिया है कि पार्टियों के परिवारवाद में उनका महत्व कहां और कितना है। बीएसपी के संस्थापक कांशीराम सियासत में वंशवाद की परंपरा के कट्टर विरोधी थे।

उन्होंने अपने भाई दरबारा सिंह समेत परिवारीजनों तक को सियासत से दूर रखते हुए मायावती को पार्टी में अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन कहते हैं कि सियासत में सब जायज है। आज वही मायावती अपने गुरु के सिद्धांतों के विपरीत वंशवाद को ही प्रोत्साहित कर रही हैं। पहले अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। अब भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। ऐसा कर मायावती ने एक बार फिर प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति के मुद्दे को हवा दे दी है।

हालांकि प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (एस), अपना दल (कमेरावादी), निषाद पार्टी, कांग्रेस समेत बीजेपी तक में इसकी बेल बखूबी लहलहा रही है। सपा में स्व. मुलायम सिंह यादव पार्टी के संस्थापक थे, उनके पुत्र अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाई प्रो. रामगोपाल यादव प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव, दूसरे भाई शिवपाल यादव राष्ट्रीय महासचिव, बहू डिंपल यादव मैनपुरी से सपा की सांसद हैं। भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं और अक्षय यादव फिरोजाबाद से सांसद रहे हैं।

दूसरे दलों पर वंशवाद को पालने-पोसने का आरोप लगाने वाली बीजेपी खुद इससे अछूती नहीं है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व राज्यपाल स्व. कल्याण सिंह, पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल समेत कई नाम इस श्रेणी में हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह द्वारा स्थापित लोकदल भी इससे प्रभावित रहा। उनके न रहने पर उनके बेटे अजीत सिंह चौधरी द्वारा नया दल राष्ट्रीय लोकदल गठित किया गया जिसके वर्तमान अध्यक्ष उनके बेटे जयंत चौधरी हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की पार्टी में भी उनके बेटे अरविंद राजभर राष्ट्रीय महासचिव है। निषाद पार्टी की हालत ऐसी ही है।

पार्टी सुप्रीमो डॉ. संजय निषाद प्रदेश के कैबिनेट मंत्री हैं। उनका एक इंजीनियर बेटा सरवन निषाद चौरीचौरा विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक है। वहीं दूसरा बेटा प्रवीण निषाद संतकबीर नगर से बीजेपी सांसद हैं। संजय निषाद अब अपने सबसे बड़े और तीसरे बेटे डॉ. अमित को भी लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए प्रयासरत हैं। दिलचस्प बात यह है कि संजय निषाद जिस निषाद समाज के वोट बैंक पर राजनीति करते हैं। उनकी पार्टी में एक भी विधायक उनके समाज यानि निषाद नहीं है। जबकि उनकी पार्टी के कुल छह विधायक हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

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