नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG Report:) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का वेतन कम है और श्रम कानूनों एवं श्रमिक कल्याण प्रावधानों के क्रियान्वयन में कई कमियां पाई गई हैं। कैग ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (एमडब्ल्यू अधिनियम) के अनुसार मजदूरी सुनिश्चित करने में राज्य सरकार के हस्तक्षेप को अपर्याप्त बताया और कहा कि श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास ठोस बदलाव लाने में असफल रहे हैं।
CAG Report: 590 श्रमिकों से की गई बातचीत
वर्ष 2015-16 से 2020-21 की अवधि के लिए चाय बगानों में काम करने वाली जनजाति के कल्याण के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा में कम आय और शिक्षा के अभाव को श्रमिकों के समग्र विकास में प्रमुख बाधाओं के रूप में चिह्नित किया गया। ऑडिट चार क्षेत्रों – कछार, डिब्रूगढ़, नगांव और सोनितपुर में किया गया था, जिनमें 390 चाय बागानों में से 40 का चयन उनके आकार और श्रमिक संख्या के आधार पर किया गया। इस दौरान चयनित सम्पदाओं में कार्यरत 590 श्रमिकों से बातचीत की गई और अभिलेखों की समीक्षा की गई।
न्यूनतम वेतन तया नहीं किया गया
रिपोर्ट में चाय जनजाति कल्याण विभाग (टीटीडब्ल्यूडी) के श्रमिकों के मुद्दों को हल करने के प्रयासों की आलोचना की गई, क्योंकि यह बिना बुनियादी सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के किया गया और पहल को अव्यवस्थित तरीके से लागू किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि चाय बागानों में श्रमिकों को मिलने वाला वेतन बहुत कम है और असम सरकार ने चाय बागान अधिनियम, 1948 के अनुसार न्यूनतम वेतन तय नहीं किया है। रिपोर्ट में इस बात पर भी ध्यान दिलाया गया है कि श्रमिक राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अनुसूचित रोजगार का हिस्सा नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम मजदूरी मानक और परिवर्तनीय महंगाई भत्ते का लाभ नहीं मिलता है।
बराक घाटी के श्रमिकों को कम मजदूरी
श्रम एवं कल्याण विभाग के सचिव ने कैग को बताया कि राज्य सरकार ने जब न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार वेतन बढ़ाने की पहल की तो उसे अदालत में चुनौती दी गई, जिससे वेतन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो सकी। रिपोर्ट में बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के श्रमिकों के बीच मजदूरी की असमानता को भी रेखांकित किया गया है। बराक घाटी के श्रमिकों को ब्रह्मपुत्र घाटी के श्रमिकों की तुलना में कम से कम 10 प्रतिशत कम मजदूरी दर मिल रही है और सरकार ने इस मुद्दे को हल करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। श्रम विभाग इस असमानता का कोई उचित कारण नहीं बता सका।