भारत के चंद्रयान मिशन पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं। आखिरकार हमारे वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास के बाद चांद पर तिरंगा लहरा दिया। रूस के लूना-25 की असफलता के बाद दुनिया सकते में थी। एक तरह से अंतरिक्ष में होड़ को लेकर निराशा फैल रही थी। वहीं, चंद्रयान मिशन की सफलता के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा था। यह भारत के लिए गर्व का विषय है। चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक चांद पर उतार कर भारत ने दुनिया को के सामने अपनी अंतरिक्ष क्षमता का लोहा मनवा लिया है। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक रात-दिन लगे हुए थे। भारत की सफलता को देखने के लिए पूरी दुनिया अपनी निगाहें गड़ाए थी। पूरे देश में एक उत्सव का माहौल रहा। इसरो की तरफ से चंद्रयान की लैंडिंग का सीधा प्रसारण किए जाने से देश में एक अलग तरह का माहौल था।
इसरो के कंट्रोल सेंटर से सीधा लाइव प्रसारण किया जा रहा था। भारत और पूरी दुनिया के लिए यह बेहद अद्भुत और आनंददायक रहा। भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जो दक्षिणी ध्रुव के करीब चंद्रयान-3 को लैंडिंग कराने में कामयाब रहा है। इससे पहले जिसने भी ऐसा करने का प्रयास किया विफल ही रहा। इस सफलता के बाद दुनिया भर को चांद का और अत्यधिक रहस्य जानने में सफलता मिलेगी। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास जहां यह उतरा, वह इलाका बेहद ठंडा है। वहां का तापमान माइनस 230 डिग्री सेल्सियस है। चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर है। भारतीय वैज्ञानिकों ने चार साल तक अथक प्रयास के बाद चंद्रयान-2 की गलतियों से सीख लेकर उसकी खामियां दूर की।
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। यह पिछले कई दशक में हमारे वैज्ञानिकों द्वारा की गई अथक मेहनत का परिणाम है। अंतरिक्ष की दुनिया में सबसे कम खर्च में हमारे वैज्ञानिकों ने बुलंदी का झंडा गाड़ा है। हम चांद को जीतने में कामयाब हुए हैं। इसरो ने 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था। पूरी दुनिया ने इस प्रक्षेपण को बड़ी गौर से देखा। सबमें एक उत्सुकता थी। यह हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम का सबसे बड़ा भरोसा है। बेंगलुरु से सीधा प्रसारण देखकर पूरा देश इस अद्भुत क्षण का गवाह बना। यान की छह हजार किमी प्रति घंटे की गति को कम 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर पहुंचा। इस मिशन को लेकर स्कूली छात्र-छात्राओं में बेहद उत्साह देखा गया और उनके देखने के लिए सीधे प्रसारण के लिए व्यवस्था की गई थी।
चंद्रमा कभी हमारे लिए किस्से कहानियों में होता था। दादी और नानी की कहानियों में उसके बारे में जानकारी मिलती थी। लेकिन आज वैज्ञानिक शोध और तकनीकी विकास की वजह से हम चांद को जीतने में लगे हैं। चंद्रलोक के बारे में वैज्ञानिक जमीनी पड़ताल कर रहे हैं। चंद्रलोक की बहुत सारी जानकारी हमारे पास उपलब्ध है। दुनिया के लिए चांद अब रहस्य नहीं है। अब वहां मानव जीवन बसाने के लिए भी रिसर्च किए जा रहे हैं। वैज्ञानिक शोध से यह साबित हो गया है कि चांद पर जीवन बसाना आसान है।
मिशन की सफलता में हमारे वैज्ञानिक जुटे हुए थे। चार साल के अथक प्रयास के बाद उन्हें यह कामयाबी मिली है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के अनुसार इस मिशन करीब 615 करोड़ का खर्च आया है। चंद्रयान-2 मिशन पर 978 करोड़ रुपये का खर्च आया था। लेकिन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के भरपूर प्रयास के बावजूद भी मिशन फेल हो गया था। अभियान के अंतिम क्षणों में विक्रम लैंडर में दिक्कत होने से झटका लगा था। इससे हमारे वैज्ञानिक निराश नहीं हुए थे। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के प्रयास से चंद्रयान -3 पूरी तरह सफल रहा। यह हमारे लिए गर्व की बात है। पूरे भारत के लिए यह गर्व का विषय है।
प्रभुनाथ शुक्ला