हरियाणा सरकार और किसान संगठनों के बीच टकराव की भूमिका तैयार होने लगी है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने आज यानी मंगलवार तक शंभू बार्डर को खोलने का आदेश दिया था। इसके जवाब में सैनी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में शंभू बार्डर को लेकर गुहार लगाई है। अभी सुप्रीमकोर्ट का इस मामले में फैसला आना बाकी है। हालांकि किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसान शुभकरण सिंह के मामले में 12 जुलाई को सुनवाई करते समय सुप्रीमकोर्ट ने भी माना था कि इतने लंबे समय तक किसी राज्य का हाईवे को बंद रखना गलत है। ऐसी स्थिति में हरियाणा सरकार को सुप्रीमकोर्ट से इस मामले में राहत मिलने की उम्मीद काफी कम है। सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी और पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के मद्देनजर किसान संगठनों संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक), किसान मजदूर मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन शहीद भगत सिंह ने 17 जुलाई को अंबाला के एसपी कार्यालय का घेराव करने की योजना बनाई है।
किसान आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए किसान नेता नवदीप जलबेड़ा की रिहाई के लिए एसपी कार्यालय का घेराव किसान संगठन करने जा रहे हैं। इस घेराव को विफल करने के लिए सैनी सरकार ने भी कमर कस ली है। प्रदेश सरकार ने अंबाला में भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 लागू कर दिया है। सरकार ने किसान संगठनों को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने बिना अनुमति एसपी कार्यालय का घेराव किया, तो घेराव में शामिल होने वाले किसानों के पासपोर्ट रद्द कर दिए जाएंगे। यदि इस दौरान किसी प्रकार की तोड़फोड़, हिंसात्मक गतिविधियां होती हैं, तो उसके जिम्मेदार किसान नेता और किसान होंगे। ऐसी स्थिति में होने वाले नुकसान की भरपाई किसान संगठनों से की जाएगी और इसमें शामिल किसानों के बैंकखाते सीज कर दिए जाएंगे।
इसके बावजूद ऐसा नहीं लगता है कि किसान संगठन सरकार की चेतावनी पर ध्यान देंगे। किसान संगठन आगामी कुछ दिनों में दिल्ली कूच की तैयारी में भी हैं। किसान संगठनों के कार्यकर्ता पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर किसानों को संगठित करने और छह महीने का राशन-पानी साथ लेकर दिल्ली कूच के लिए तैयार होने का संदेश दे रहे हैं।
22 जुलाई को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में लगभग दो सौ किसान संगठनों का साझा सम्मेलन होगा जिसमें विपक्ष के नेता भी शामिल होंगे। अभी प्रदेश में जो हालात हैं, उसको देखते हुए यह आभास हो रहा है कि किसान संगठन सरकार की बातों को मानने के मूड में नहीं हैं। यदि ऐसा होता है, तो किसान संगठनों और सरकार के बीच टकराव बढ़ सकता है। यह कोई आदर्श स्थिति नहीं है। सरकार और किसान संगठनों को बातचीत करके मामले को हल करने की कोशिश करनी चाहिए।
-संजय मग्गू
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