इन दिनों सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं। वैसे तो सब्जियों और टमाटर, प्याज, लहसुन के दाम हर साल बरसात के दिनों में बढ़ जाते थे। इसमें नया क्या है? नया यह है कि सब्जियों के दाम पिछले वर्षों की तुलना में कुछ ज्यादा ही बढ़े हुए हैं। कारण है हीट वेव के चलते सब्जियों का उत्पादन प्रभावित होना। साल 2022 में हीटवेव ने 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ा था। इस बार भी गर्मी ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। यह समय बरसात का है। देश में कहीं इतनी अधिक बरसात हो रही है कि जलभराव की नौबत आ रही है, कहीं पर छिटपुट बरसात हो रही है जिससे खेती-किसानी के प्रभावित हो जाने का अंदेशा पैदा हो गया है। कहीं उम्मीद से कम और कहीं उम्मीद से अधिक बरसात होने से सारा संतुलन गड़बड़ा रहा है। इस असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। देश इस क्लाइमेट चेंज के चलते गंभीर आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा है। यदि यही हालात रहे तो वर्ष 2050 तक भारत को अर्थव्यवस्था की 22 प्रतिशत आय हानि उठानी पड़ सकती है।
जलवायु परिवर्तन का असर अब भारत के आम जनजीवन पर दिखाई देने लगा है। हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे देश का खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होने लगा है। जब साल 2022 में हीटवेव ने 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ा था, तो उस साल गेहूं और अन्य सहयोगी फसलों का न केवल उत्पादन प्रभावित हुआ था, बल्कि महंगाई भी बेतहाशा बढ़ी थी। कीमतों में भारी वृद्धि न केवल आम जन को परेशान करती है, बल्कि इसका दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। चावल, चीनी, गेहूं और सब्जी जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी लोगों की क्रयशक्ति को घटा देती है। साल 2022 में खेती-किसानी से जुड़े लोगों की आजीविका सीधे-सीधे प्रभावित हुई थी।
यह प्रभाव सिर्फ खेती क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता है। मैन्यूफैक्चरिंग और भवन निर्माण आदि क्षेत्र भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते हैं। हीटवेव और जलवायु परिवर्तन की वजह से लोग बाहर निकलकर काम करने से परहेज करते हैं। इससे आउटडोर वर्किंग आॅवर्स का नुकसान होता है। यह नुकसान भी तो अर्थव्यवस्था से ही जुड़ता है। एक अनुमान के अनुसार यदि हालात में परिवर्तन नहीं हुआ तो अगले पांच-छह सालों में 250 अरब डॉलर का नुकसान संभव है। यह नुकसान जीडीपी का साढ़े चार प्रतिशत हो सकता है।
एक ओर यह दावा किया जा रहा है कि पांच छह साल में भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था हो जाएगा, वहीं जलवायु परिवर्तन के चलते इतने बड़े नुकसान की पूर्ति कैसे होगी, इसके बारे में लगता है कोई सोचने की जहमत नहीं उठा रहा है। जलवायु परिवर्तन के लिए जो कारक जिम्मेदार हैं, उससे निजात पाने में अभी भारत को कई दशक लगेंगे। बिजली उत्पादन में अभी हमारे देश की कोयले पर निर्भरता 75 प्रतिशत तक है। जब तक देश के उद्योग कोयले से निजात नहीं पाते हैं, तब तक कुछ भी बदलाव होने वाला नहीं है। कोयले का उपयोग तत्काल रोक पाना हमारी अर्थव्यवस्था के लिए दो या तीन दशक तक संभव नहीं है।
-संजय मग्गू