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क्लर्कों के समर्थन में कंप्यूटर स्टाफ यूनियन भी हड़ताल में शामिल, आम जनता हुई परेशान

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रेवाड़ी में लिपिक वर्ग की हड़ताल आज दसवें दिन में प्रवेश कर चुकी है। विभिन्न कर्मचारी संगठन भी उनकी मांग को जायज मानते हुए उनके साथ धरने पर बैठ गए है । आज कंप्यूटर स्टाफ यूनियन ने भी क्लर्कों का समर्थन करते हुए उनका साथ देने का ऐलान कर दिया है। मतलब सरकारी कार्यालयों में अब न ही तो क्लर्क है और न ही कंप्यूटर ऑपरेटर । कर्मचारियों की मांग गलत है या सरकार जानबृूझ कर उनकी मांग को मानना नहीं चाहती है, इसका पता तो बाद में चलेगा, लेकिन इस हड़ताल से यहां का आम आदमी परेशान है। लोग अब जानना चाह रहे है कि आखिर कर्मचारी व सरकार की लड़ाई में उन्हें पीसने के लिए क्यों छोड़ दिया गया है ?

क्लर्कों ने आज से दस दिन पहले 35 हजार 400 रुपये वेतनमान की मांग को लेकर हड़ताल शुरू की थी। पुरानी कहावत है कि में चला था अकेला, लोग मिलते गए और कांरवा बढ़ता गया, ठीक उसी तरह क्लर्कों के साथ आए दिन विभिन्न कर्मचारी संंगठन आकर मिल रहे है और उनकी मांग को जायज बताते हुए उनके समर्थन में अपना काम काज ठप कर उनके साथ आकर बैठ रहे है । अब कंप्यूटर ऑपरेटर यूनियन के सदस्य भी उनके पक्ष में आ गए है । उन्होंने भी जुलूस निकाला और कहा कि लिपिकों की मांग जायज़ है, सरकार को इसे मानना चाहिए , वरना वह भी इस हड़ताल का हिस्सा बनेंगे। क्लर्कों की हड़ताल से हालात ये हो गए है कि लगभग सभी कार्यालयों की कुर्सियां खाली पड़ी है। उनकी धूल साफ़ करने वाला भी कोई दिखाई नहीं देता। क्लर्क किसी भी विभाग की रीढ़ होता है और जब रीढ़ ही काम नहीं कर रही है , तो पूरा शरीर खराब हो जाता है। ऐसा ही हाल आज सरकारी कार्यालयों का हो रहा है। लोग कार्यालयों में जा रहे है और परेशान होकर बेरंग लौट रहे है ।

तहसील में जहां रजिस्ट्रियां नहीं हो रही है , वहीं वाहन रजिस्ट्रेशन कार्यालय में भी काम धीमा हुआ पड़ा है। लगभग सभी कार्यालयों का यही हाल है। सरकार और कर्मचारियों के बीच क्या चल रहा है, यह तो वह ही जानें , लेकिन क्लर्कों की हड़ताल ने आमजन को परेशान कर दिया है। इधर धरनास्थल पर एक कर्मचारी नेता ने बताया कि उनके डेलीगेशन की सरकार से बात हुई है । वार्तालाप भी लगभग सकारात्मक ही रही है। संभवतया जल्द ही उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। अच्छा हो कि उक्त कर्मचारी नेता की बात सही निकले और इस समस्या का जल्द ही कोई हल निकल जाए , वरना जनता का तो वही हाल है , जैसे दो पाटों के बीच फंसकर गेंहू पूरी तरह पिस कर रह जाता है।

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