Monday, March 10, 2025
30.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiदलबदल संस्कृति ने भारतीय राजनीति का किया बेड़ा गर्क

दलबदल संस्कृति ने भारतीय राजनीति का किया बेड़ा गर्क

Google News
Google News

- Advertisement -

चुनाव के समय में दल बदल एक सामान्य प्रक्रिया है। आयाराम-गयाराम की संस्कृति लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई नई नहीं है। जिस अनुपात में हमारे देश में दलबदल होता है, उतना शायद दुनिया के किसी भी देश में नहीं होता होगा। हमारे देश में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई, तो विचारों में मतभेद या विरोध होने पर नेताओं ने पार्टी को छोड़कर या तो नई पार्टी बनाई या फिर राजनीति से संन्यास ले लिया। यह नैतिकता आजादी के डेढ़-दो दशक तक ही रही। जिन दलों से वैचारिक मतभेद रहे, उस दल की सदस्यता लेने की हिम्मत नेता नहीं उठा पाए, लेकिन जैसे जैसे देश में सिद्धांतहीन राजनीति पनपती गई, लोग विचारधारागत धुर विरोधी दलों की भी सदस्यता लेने लगे।

इन दिनों हरियाणा में भी यही हो रहा है क्योंकि चुनाव के तारीख की घोषणा हो चुकी है। दो दिन बाद से नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। ऐसी स्थिति में जिन नेताओं, विधायकों और वर्तमान या पूर्व मंत्रियों को अपनी पार्टी में टिकट मिलने की संभावना बिल्कुल नहीं है या पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया है, वे विरोधी दलों का दामन इस शर्त पर थाम रहे हैं कि वह उन्हें टिकट देंगे। हो सकता है कि कई नेताओं ने खुले तौर पर यह शर्त न रखी हो, लेकिन उनकी मंशा यही होती है कि जिस दल में वे जा रहे हैं, वह उन्हें उनके इलाके से चुनाव जरूर लड़वाएगा। जाति, धर्म और भारी भरकम व्यक्तित्व को देखते हुए राजनीतिक दल अपने विरोधी दलों के बागी नेताओं को अपने में समाहित भी कर लेते हैं। कई राजनीतिक दल चुनावी गुणा भाग करके उन्हें टिकट भी दे देते हैं, यदि उन्हें लगता है कि बागी नेता जरूर चुनाव जीत जाएगा।

ऐसी स्थिति में दल के वे नेता जो काफी समय से अपनी पूरी निष्ठा और मन से पार्टी में लगे हुए होते हैं, वे और उनके समर्थक बाहर से आए नेता को टिकट देने पर अपना अपमान समझने लगते हैं। वे या तो दल में शामिल हुए नए नेता को अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर विरोध करते हैं या फिर निष्क्रिय हो जाते हैं। और यह क्रम चलता रहता है। इन दिनों हरियाणा में यही हो रहा है। भाजपा, कांग्रेस, जजपा, इनेलो और आम आदमी पार्टी सहित अन्य दल इसी समस्या से जूझ रहे हैं। दो दिन बाद नामांकन प्रक्रिया शुरू होने वाली है और अब तक भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल अपने प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं कर पाए हैं। आज या कल तक वे सूची जारी करने को बाध्य हैं, लेकिन इन्हें भीतर ही भीतर असंतोष और भितरघात की आशंका सताए जा रही है। बैठकों का दौर जारी है, संभावित बागियों को मनाया जा रहा है, असंतोष जाहिर करने वालों को भविष्य में बड़ा पद देने या कहीं और खपाने का आश्वासन दिया जा रहा है। दरअसल, इस दलबदल ने ही भारतीय राजनीति का बेड़ा गर्क किया है।

-संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

छोटी मुसीबत को किसान ने बड़ी समझा

बोधिवृक्षअशोक मिश्रजब तक किसी समस्या का सामना न किया जाए, तब तक वह बहुत बड़ी लगती है। सामना किया जाए, तो लगता है कि...

स्वभाव में साम्यता की वजह से पुतिन की ओर झुके ट्रंप?

संजय मग्गूराष्ट्रपति चुनाव के दौरान जनता के बीच दिए गए ‘अमेरिका फर्स्ट’ नारे को लागू करने में डोनाल्ड ट्रंप पूरी शिद्दत से जुट गए...

Recent Comments