देश रोज़ाना: दीपिका पादुकोण ने काफी विद करण शो में अपने पुराने संबंधों का जिक्र क्या किया, सोशल मीडिया में भूचाल आ गया। उन्हें अच्छी लड़की की कैटेगरी से निकालकर बुरी लड़की के खांचे में डाल दिया गया। ट्रोलर्स ने ऐसी-ऐसी बातें कहीं जिनको किसी भी सभ्य समाज की प्रतिक्रिया नहीं कही जा सकती है। शो में उन्होंने यही बताया कि जब उनकी पति रणवीर सिंह के साथ दोस्ती हुई थी, तो वह उसको लेकर उतनी गंभीर नहीं थीं। प्रतिबद्ध नहीं थीं। उस समय उनकी मानसिक हालत ऐसी नहीं थी कि किसी रिश्ते को लेकर वे प्रतिबद्ध हो सकें। उस दौरान उनकी कई लोगों से दोस्ती थी। उन्होंने अंग्रेजी में एक बात कही थी। जिसका मतलब यह निकलता है कि भले ही मेरा शरीर किसी और पुरुष के साथ था, लेकिन मेरी रूह रणवीर के साथ थी। दीपिका का यह कहना था कि मर्दवादी मानसिकता में उबाल आ गया। उन्हें यह कैसे बरदाश्त हो सकता है कि कोई स्त्री खुलेआम अपने रिश्तों को स्वीकार करे। उन्हें दीपिका पादुकोण का यह आचरण पितृसत्ताक व्यवस्था के खिलाफ लगा।
सैकड़ों सालों से चली आ रही मर्दवादी मानसिकता से ग्रसित पुरुष यह कैसे स्वीकार कर सकता है कि स्त्रियां अपने शरीर और जीवन को लेकर स्वतंत्र हो जाए। वह अपने शरीर और यौन संबंधों का फैसला खुद करे। अगर यही बात दीपिका के पति रणवीर सिंह ने कही होती, तो क्या सोशल मीडिया पर इतना ही हंगामा मचता? नहीं, तब इस मामले को बहुत हलके में लिया जाता और इस पर चर्चा करने की जरूरत ही नहीं समझी जाती। इस मामले में दीपिका को ट्रोल करने वाले लोग चाहते हैं कि जब भी वे किसी के साथ संबंध बनाएं तो शरीर भले ही स्त्री का हो, लेकिन उसका मालिकाना हक सिर्फ उनके पास ही होना चाहिए। भले ही वे खुद कई महिलाओं से संबंध रखे हुए हों। लोगों को यह डर है कि आज दीपिका अपने संबंधों के बारे में खुलकर बात रही हैं। कल दूसरी कोई बात करेगी और फिर परसों तीसरी। इस तरह तो यह तपिश उनके घर तक पहुंच जाएगी। फिर उनकी बहन, बेटी, बीवी भी अपने यौन संबंधों को लेकर खुलकर बात करने लगेगी।
यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा? मर्दवादी मानसिकता के लोग बस इसी भय से ग्रस्त हैं। वे खुद भले ही मित्र मंडली, समाज में अपने तमाम आंतरिक संबंधों की कहानियां दोहराते फिरें, उनकी कहानियों को उनके मर्द होने का पैमाना माना जाता है। कि जैसे पुरुषों को कइयों से यौन संबंध रखने का हक है। लेकिन यदि उनके घर-परिवार, पास-पड़ोस या नाते-रिश्तेदारों में आने वाली स्त्री ऐसा करे, तो कयामत आ जाती है। समाज, संस्कार और इज्जत खतरे में आ जाती है। सवाल यह है कि रिश्तों के बनने-बिगड़ने और जीवन में आए उतार-चढ़ाव के बारे में बात करना गलत कैसे हो सकता है। जिस तरह पुरुष अपने जीवन की तमाम अच्छाइयों-बुराइयों की चर्चा कर सकता है, वैसे स्त्री भी कर सकती है। इसमें गलत क्या है?
– संजय मग्गू