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Editorial: भारत से भेदभाव करती हैं अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां ?

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देश रोज़ाना: भारत पिछले कई वर्षों से मूडीज, फिच और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स जैसी रेटिंग एजेंसियों की नीतियों से असंतुष्ट है। इन रेटिंग कंपनियों ने वर्ष 2008 से भारत की सॉवरेन रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है। यह पिछले कई वर्षों से बीबीबी माइनस पर ही अटका हुआ है। जबकि भारत वर्ष 2008 में ही विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन गया था। अब तो वह तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से अग्रसर है।

भारत विश्व की तेजी से बढ़ती दूसरी अर्थव्यवस्था है, लेकिन उसकी सॉवरेन रेटिंग स्थिर होने से पूंजी निवेश को आकर्षित करने में दिक्कत हो रही है। इन रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग एएए- का मतलब है कि अमुक देश अपने सभी कर्जे चुकाने में सक्षम है। वहीं बीबीबी- का अर्थ होता है कि देश अपने कर्जे चुकाने में सक्षम नहीं है। इस देश में पूंजी निवेश जोखिम भरा है। स्वाभाविक है कि दुनिया के दूसरी तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था वाले देश भारत को इस रेटिंग से आपत्ति होगी।

बीबीबी-सबसे निचली वाली रेटिंग मानी जाती है, जबकि एएए- रेटिंग पाने वाले कई ऐसे देश भी हैं जो भारत के मुकाबले में कहीं नहीं टिकते हैं। इस मामले में भारत का कहना है कि रेटिंग एजेंसियों को सॉवरेन रेटिंग देते वक्त उस देश की कर्ज चुकाने की क्षमता का इतिहास देखना चाहिए। रेटिंग एजेंसियों को रेटिंग तय करते वक्त ऐसी सूचनाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिए जिनकी गुणवत्ता संदिग्ध हों। कोई भी देश आईएमएफ या अन्य कर्जदाता एजेंसियों से कर्ज लेता है, तो उसकी रेटिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

भारत अपने कर्जदाताओं से डॉलर की जगह रुपये में कर्ज ले रहा है। यही वजह है कि इन रेटिंग एजेंसियों की निगाह भारत पर नहीं पड़ती है। निचले दर्जे की रेटिंग के चलते भारत को ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है। इससे देश पर आर्थिक भार बढ़ जाता है। वैसे भी आईएमएफ ने भारत पर लगातार बढ़ते कर्ज को लेकर आगाह किया है। उसका कहना है कि यदि भारत ने इस मामले में ध्यान नहीं दिया, तो उसका कर्ज जल्दी ही सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के सौ प्रतिशत से भी ज्यादा हो जाएगा। देश का जीडीपी वर्ष 2020 में 89 प्रतिशत था। हालांकि इसके अगले साल यह घटकर 84 प्रतिशत तक आ गया था। वर्ष 2022-23 में भारत का कर्ज 81 प्रतिशत था। आईएमएफ का इस बारे में कहना है कि यदि भारत ने इस मामले में ध्यान नहीं दिया, तो लंबी अवधि में कर्ज बढ़ने का जोखिम बना रहेगा।

आरबीआई ने जो उधारी कैलेंडर जारी किया है, उसके मुताबिक मार्च 2022-23 में भारत पर कुल 152.61 लाख करोड़ रुपये कर्ज था। केंद्र के बजट अनुमान के अनुसार वर्ष 2023-24 में यह कर्ज 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 169 लाख करोड़ हो सकता है। अगर भारत की रेटिंग सुधर जाए, तो भारतीय कंपनियों को कम ब्याज पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कर्ज मिल सकता है। ऊंचे राजकोषीय घाटे के बावजूद भारत अपने आर्थिक सुधारों और हाल में कोरोना से निपटने में दिखाई अपनी क्षमता की वजह से एक विश्वसनीय अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है।

  • संजय मग्गू
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