देश रोज़ाना: हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह माना जाता है कि मर्द को रोना नहीं चाहिए। उसकी छवि ही इस तरह की गढ़ी गई है कि रोने वाला पुरुष मर्द नहीं होता है। हमारे देश में तो लोग हंसी मजाक में कह भी देते हैं, क्या यार! लड़कियों की तरह रो रहे हो। अरे, तुम तो रोने में लड़कियों को मात देते हो। मतलब कि यह मान लिया गया है कि रोना सिर्फ लड़कियों का काम है। मर्द को रोना नहीं चाहिए। यह मर्दवादी सोच है। जवानी के दिनों में रोने को औरतपन (औरत होने की निशानी) वाले लोग जैसे-जैसे उम्र ढलती जाती है, वे सामाजिक कारणों से अकेले में या छिप-छिपाकर रोने लगते हैं।
अब कोई इन मर्दवादियों से पूछे कि जिस तरह खाने-पीने, सोने-जागने में स्त्री-पुरुष का भेद नहीं किया जाता है, तो फिर रोने के मामले में यह भेदभाव क्यों? जिस तरह हंसना, गाना, अच्छी बातों पर खुशी महसूस करना, बुरी बात पर दुखी होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, तो फिर रोना इससे अलग कैसे है? लगभग तीन-चार दशक पहले अमिताभ बच्चन की एक फिल्म आई थी ‘मर्द’। उस फिल्म में अमिताभ बच्चन कहते हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता। अब जब किसी मर्द को दर्द ही नहीं होता है, तो फिर उसके रोने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। लेकिन जो लोग रोते नहीं है, अपनी भावनाओं को दबाते हैं, उसका दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ता ही है। मानसिक स्वास्थ्य पर फर्क पड़ता है। यही वजह है कि ब्रिटेन में पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक एप लांच किया गया है। एप लांच करने वालों का कहना है कि जब व्यक्ति की जैसे-उम्र बढ़ती जाती है, उसमें रोने की इच्छा प्रबल होती जाती है।
एप लांच करने वाली टीम में मनोवैज्ञानिकों को भी शामिल किया गया है। वे लोगों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि हर मनुष्य में एक भावना होती है। उन भावनाओं को प्रकट करना किसी तरह की कमजोरी नहीं है। यदि आपके मन में रोने की इच्छा है, तो रोइए। जी भरकर रोइए। रोने से आपके मन हलका हो जाएगा। दिमागी तनाव दूर हो जाएगा। इससे आप अवसादग्रस्त नहीं होंगे। अवसाद को दूर करने का एक बेहतर तरीका रोना भी हो सकता है। इससे मेंटल हेल्थ बरकरार रहती है। हां, हर बात पर रोना भी ठीक नहीं है।
आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग फिल्म देखते समय भावुक दृश्यों को देखकर रो देते हैं। उनकी आंख में आंसू आ जाते हैं। ऐसे लोग जब अकेले होते हैं, तो आंसुओं को बेरोकटोक बहने देते हैं। लेकिन यदि वे परिवार या अन्य लोगों के साथ बैठकर फिल्म देख रहे होते हैं, तो आंसुओं को रोकने की भरपूर कोशिश करते हैं। सामाजिक कारणों से जो पुरुष रुदन को रोकने की कोशिश करते हैं, वे कई तरह की मानसिक परेशानियों का सामना करते हैं। लंदन में रहने वाले ग्रिल्स मानते हैं कि रोना भी एक तरह का योग है। इससे दिल हल्का हो जाता है। जब रोने की भावना मन में पैदा हो, तो रो ही लेना चाहिए। हर पुरुष को ऐसा करना चाहिए।
– संजय मग्गू