Japan’s top court says forced sterilization unconstitutional: जापान के सुप्रीम कोर्ट ने जबरन नसबंदी (Forced sterilization in Japan) पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। देश के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आदेश दिया कि जबरन नसबंदी से पीड़ित लोगों को सरकार मुआवजा दे। इस फैसले को ऐतिहासिक माना जा रहा है। इस आदेश के बाद करीब 25 हजार लोगों को न्याय मिल पाएगा।
forced sterilization in Japan: 25 हजार पीड़ितों को मिला न्याय
बता दें कि कोर्ट ने सरकार को उन पीड़ितों को उचित मुआवजा देने का आदेश दिया जिनकी अब निरस्त किए जा चुके ‘यूजेनिक्स प्रोटेक्शन लॉ’ (The Eugenic Protection Law) के तहत जबरन नसबंदी (Forced sterilization in Japan) की गई थी। यह कानून शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के संतान न पैदा करने के लिए बनाया गया था। ऐसा अनुमान है कि पैदा होने वाली संतानों में किसी प्रकार की शारीरिक कमी को रोकने के लिए 1950 से 1970 के बीच इस कानून के तहत बिना सहमति के करीब 25,000 लोगों की नसबंदी की गई।
‘सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन’
वादी के वकीलों ने इसे (Forced sterilization in Japan) जापान में ‘‘युद्ध के बाद के युग में सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन’’ बताया। अदालत ने कहा कि 1948 का यह कानून असंवैधानिक था। बुधवार को आया फैसला 39 में से 11 वादियों के लिए था जिन्होंने अपने मामले की देश के उच्चतम न्यायालय में सुनवाई कराने के लिए जापान की पांच निचली अदालतों में मुकदमे लड़े। अन्य वादियों के मुकदमे अभी लंबित हैं। इनमें से कई वादी व्हीलचेयर पर आश्रित हैं। उन्होंने फैसले के बाद अदालत के बाहर शुक्रिया अदा किया।
प्रधानमंत्री किशिदा ने मांगी माफी
तोक्यो में 81 वर्षीय वादी साबुरो किता ने कहा, ‘मैं अपनी खुशी बयां नहीं कर सकता और मैं यह अकेले कभी नहीं कर पाता।’ किता ने बताया कि उनकी 1957 में 14 साल की उम्र में नसबंदी कर दी गई थी जब वह एक अनाथालय में रहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी की मौत से कुछ समय पहले ही अपने इस राज से पर्दा उठाया था। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी वजह से कभी बच्चे न हो पाने का खेद है। प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने पीड़ितों से माफी मांगी और कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से माफी मांगने के लिए वादियों (Forced sterilization in Japan) से मुलाकात करने की उम्मीद है। किशिदा ने कहा कि सरकार नयी मुआवजा योजना पर विचार करेगी।