क्रोध को अक्रोध से ही जीता जा सकता है। घृणा को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि सबसे प्रेम किया जाए। कहते हैं कि प्रेम के बल पर मतवाले हाथी को भी काबू किया जा सकता है। एक बार की बात है। किसी गांव में एक संत रहते थे। संत हमेशा लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने, लोगों का भला करने और परस्पर प्रेम से रहने की सलाह दिया करते थे। उनका कहना था कि व्यक्ति को धरती की तरह क्षमाशील और धैर्यवान होना चाहिए। लोग धरती का सीना चीर कर बीज बोते हैं। उसके बावजूद धरती इंसानों के इस कृत्य को क्षमा कर देती है।
वह उन्हें खाने के लिए अनाज और फल-फूल आदि प्रदान करती है। यदि लोग धरती की तरह क्षमाशील हो जाएं, तो लोगों में किसी तरह का विवाद ही नहीं रहे। यह सुनकर एक व्यक्ति उठकर खड़ा हुआ और बोला, मैं इस बात को नहीं मानता हूं। आपके उपदेश सुनने में तो ठीक हैं, लेकिन इन पर अमल करना बहुत कठिन है। बिल्कुल असंभव। इसके अलावा उसने संत को काफी ऊलजुलूल बातें कही। इतना कहकर वह व्यक्ति वहां से चला गया। अगले दिन जब उसका गुस्सा ठंडा हुआ, तो उसे लगा कि कल उसने संत के साथ बहुत बुरा बरताव किया था।
उसे पश्चाताप हुआ। वह तुरंत संत के पास पहुंचा और संत के चरणों में गिर गया। अपने किए की क्षमा मांगने लगा। संत ने पूछा, तुम कौन हो भाई और मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो? तब उस व्यक्ति ने एक दिन पहले किए गए अपराध के बारे में बताया। तब संत ने कहा कि अरे, मैं तो कल की बात कल ही भूल गया था। तुम अब तक उसमें उलझे हुए हो। आदमी को जो बीत गया, उसको छोड़कर वर्तमान और भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। तुम्हें पश्चाताप है, यही बहुत है।
-अशोक मिश्र