हमारे देश को स्वाधीन कराने के लिए असंख्य युवाओं ने अपना बलिदान दिया। क्रूर ब्रिटिश सत्ता ने किसी को फांसी की सजा सुनाई तो किसी को आजीवन कारावास दिया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने असीम साहस का परिचय देने वाले हजारों क्रांतिकारियों में नगालैंड की रानी गाइदिन्ल्यू का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। नगालैंड के लुआंग ओ गांव में 1915 को जन्मी गिडालू जब 13 साल की थीं, तभी नगालैंड को अंग्रेजों की दास्ता से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र बगावत करने वाले जादोनाग के संपर्क में आईं। उन्होंने जादोनाग की प्रेरणा से नगा आदिवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करना शुरू कर दिया था। जब वह सत्रह साल की थीं, तब उनकेसाथ चार हजार नगा आदिवासी अपने प्रदेश की स्वतंत्रता के लिए मरने और मारने को तैयार थे।
इसी दौरान क्रांतिकारी जादोनाग पकड़े गए और उन्हें अंग्रेजों ने 29 अगस्त 1931 को फांसी पर लटका दिया। इसके बाद जादोनाग के क्रांतिकारी आंदोलन को गिडालू ने आगे बढ़ाया। गिडालू के साहस और बलिदान की भावना को देखते हुए नगालैंड के आदिवासियों ने उसे देवी का दर्जा दिया और उसे रानी गाइदिन्ल्यू कहकर पुकारने लगे। रानी गाइदिन्ल्यू ने क्रांतिकारी आंदोलन का बड़ी बहादुरी के साथ नेतृत्व किया। रानी गाइदिन्ल्यू के खिलाफ अंग्रेजों ने कई बार प्रयास किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
जब गाइदिन्ल्यू अपने साथियों के लिए एक किले का निर्माण करा रही थीं, तभी अंग्रेजों ने धावा बोला और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रानी गाइदिन्ल्यू पर मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जब पंद्रह अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ, तो गाइदिन्ल्यू को भारत सरकार ने बड़े सम्मान के साथ रिहा किया। बाद में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया।
-अशोक मिश्र