ग्रेगर जोहान मेंडल को आनुवंशिकता का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने पेड़-पौधों पर काफी रिसर्च किया था, लेकिन उन्हें जन्मकाल में उतना महत्व नहीं मिला जितना मौत के लगभग तीस चालीस साल बाद मिला। ग्रेगर जोहान मेंडल का जन्म 22 जुलाई 1822 में मारविया देश के एक किसान परिवार में हुआ था। वह बचपन में अपने पिता की खेती-किसानी में मदद किया करते थे। वह बचपन से ही बड़े जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। वह अपने पिता से अक्सर अटपटे सवाल पूछा करते थे। इस पेड़ के सेब लाल क्यों हैं, जबकि इस पेड़ के सेब पीले हैं? फूलों में रंग कहां से आते हैं?
अब उनके पिता अपने बेटे के सवालों का जवाब नहीं दे पाते थे। बड़े होने पर उनके पिता ने किसी तरह चार साल तक कालेज की पढ़ाई करवाई। जब मेंडल की उम्र 18 साल की हो गई, तो उन्होंने एक ईसाई मठ में पादरी बनना पसंद किया। वहां भी वह अपने जिज्ञासु प्रवृत्ति की वजह से चर्चा में बने रहे। मठ के पदाधिकारियों ने उनकी विज्ञान और प्रकृति में रुचि के देखते हुए दो वर्ष के लिए अपने खर्चे पर वेनिस यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेज दिया। वहां से लौटने के बाद ग्रेगर जोहान मेंडल ने अल्थुन के स्थानीय स्कूल में फिजिक्स पढ़ाने लगे। यह सन 1847 की बात है। वह स्कूल में पढ़ाने के बाद अपना बाकी समय स्कूल के ही बाग-बगीचों में बिताने लगे।
उन्होंने मटर के दानों पर रिसर्च करना शुरू किया। आठ साल की मेहनत के बाद उन्होंने मटर के पौधों को लंबा या नाटा करने में सफलता हासिल कर ली। मटर की कई संकर फसलें भी बनाई। उन्होंने अपने रिसर्च को प्रकाशित कराया लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। तब उन्होंने कहा कि एक दिन मेरा भी आएगा। मौत के कई दशक बाद तीन यूरोपीय वैज्ञानिकों ने मेंडल के पर्चे को दुनिया के सामने पेश किया और वे पूरी दुनिया में छा गए।
-अशोक मिश्र