यह बाजार है बाबू! यहां मेहनत, अस्मत और प्रतिभा ही नहीं बिकती है, बल्कि सपने भी बिकते हैं। एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने हमें एक सपना दिखाना शुरू किया है। सपना यह है कि वह हमारे पूर्वजों से बात करा देने में सक्षम है। हम अपने दिवंगत माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी या बेटे-बेटियों से आभासी रूप से बात कर सकेंगे। चीन में तो बाकायदा यह ट्रेंड शुरू भी हो चुका है। चीन में मरे हुए लोग जिंदा हो रहे हैं। चीन, हांगकांग, मकाऊ, ताइवान, मलेशिया, सिंगापुर, कंबोडिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में रहने वाला चीनी समुदाय लगभग ढाई हजार साल से एक पर्व मनाया जा रहा है जिसे स्थानीय किंगमिंग या चिंगमिंग महोत्सव कहते हैं। यह लगभग हमारे देश में मनाए जाने वाले पितृपक्ष की ही तरह मनाया जाता है।
इस दिन चीन के लोग अपने पूर्वजों की कब्र पर जाकर उसकी सफाई करते हैं, प्रसाद के रूप में अपने घर से विभिन्न प्रकार के पकवान ले जाते हैं और वहां जाकर अगरबत्ती आदि जलाकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं। अंग्रेजी में इसे टोंब स्वीपिंग फेस्टिवल कहा जाता है। एआई कंपनियों ने टोंब स्वीपिंग फेस्टिवल के दौरान किसी भी चीनी नागरिक के दिवंगत सदस्यों का अवतार तैयार करना शुरू कर दिया है। अवतार तैयार करने में दिवंगत व्यक्ति की तस्वीर, उसकी आवाज और वीडियो आदि का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से तैयार अवतार एकदम हू-ब-हू दिवंगत आदमी जैसा लगता है। इस तरह के अवतार तैयार करने में केवल 20 यूआन यानी लगभग 235 रुपये शुरुआती खर्च आता है। इतना खर्च करके चीनी नागरिक अपने दिवंगत परिजनों से बातचीत कर रहे हैं। चीन में यह बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। साल 2022 में चीन में इंसानी अवतारों की मार्केट वैल्यू करीब 12 अरब यूआन यानी 13,842 करोड़ रुपये थी। अगले साल में यह चार गुना बढ़ जाने की उम्मीद जताई जा रही है।
अब सवाल यह है कि इन एआई कंपनियों को दिवंगत लोगों की तस्वीर, आवाज और वीडियो कहां से प्राप्त होते हैं। इसका सीधा सा जवाब है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स जैसे सोशल प्लेटफार्म एआई कंपनियों के सबसे बड़े स्रोत हैं। फेसबुक या अन्य सोशल साइट्स का उपयोग करने वाले जो लोग दिवंगत हो जाते हैं, उनकी तस्वीरें, आडियो-वीडियो इंटरनेट सर्वर पर मौजूद रहती हैं। इन्हीं का उपयोग करके एआई कंपनियां चांदी कूट रही हैं। सवाल यह भी खड़ा होता है कि इंटरनेट पर मौजूद सामग्री का मालिक कौन है, एलन मस्क, जुकरबर्ग जैसे लोग या दिवंगत व्यक्ति के परिजन? सोशल मीडिया पर मौजूद सामग्र्री को कल यही कंपनियां दिवंगत के परिजनों को दाम लेकर मुहैया कराएंगी या फिर डीलिट कर देंगी। इस संबंध में एक स्पष्ट नीति और कानून बनाने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं किया गया, दिवंगत व्यक्ति की सोशल साइट्स पर मौजूद संपत्ति का उपयोग कोई दूसरा करेगा और उसके उत्तराधिकारियों को इसके उपयोग की कीमत चुकानी होगी।
-संजय मग्गू