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अपने पर्यावरण को सुधारने का मौका दे रही हरियाली अमावस्या

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चार अगस्त को हरियाली अमावस्या है। यह पर्व पूरे उत्तर भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसे हरियाणवी अमावस्या भी कहते हैं। मध्यप्रदेश में मालवा और निमाड़ क्षेत्र, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा और पंजाब में हरियाली अमावस्या को पर्व के रूप में मनाया जाता है। हरियाणा को प्राचीनकाल में वैसे भी हरियाल या हरित अरण्य कहा जाता था। हरियाली अमावस्या का संबंध हमारे पर्यावरण से है। हरियाणवी अमावस्या को मानने के पीछे सदियों से हमारे पूर्वजों की भावना यह रही है कि इसी बहाने लोग अपने पर्यावरण से जुड़े रहेंगे। यही वजह है कि इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक या रुद्राभिषेक की परंपरा जोड़ी गई। लोगों को यह बताया गया कि हरियाली अमावस्या को पीपल की पूजा करने और पौधरोपण करने से धन और अन्न की कभी कमी नहीं होती है। इस दिन पौधरोपण की परंपरा भी इसी वजह से शुरू की गई ताकि लोग अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहें।

हमारे पूर्वज इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि वट, पीपल, पाकड़, इमली और आम जैसे वृक्ष प्रदूषण को खत्म करने में बहुत बड़े सहायक हैं। यही वजह है कि सदियों से हमारे प्रदेश के गांवों और नगरों में यहां-वहां पीपल, वट या पाकड़ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते थे ताकि लोगों को शुद्ध हवा मिलती रहे। लेकिन जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ते गए, पेड़ों की कटान शुरू होती गई। लोगों ने पौधरोपण करने को बोझ समझ लिया। यदि पौधरोपण किया भी, तो उसके बाद उस पौधे की देखभाल करने की जरूरत नहीं समझी गई।

नतीजा यह हुआ कि हरियाणा में वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र लगातार घटता जा रहा है। प्रदेश के 22 जिलों में से 21 में 20 प्रतिशत से कम वन और वृक्ष आवरण है। राष्ट्रीय मानक के अनुसार, हर प्रदेश को अपने क्षेत्रफल का बीस प्रतिशत हिस्सा वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र रखना चाहिए। अपने कुल क्षेत्रफल का केवल 6.7 प्रतिशत हिस्सा कवर करने वाले हरियाणा में भारत में सबसे कम वन और वृक्ष क्षेत्र हैं। वृक्षों की सबसे अधिक संख्या यमुनानगर, अंबाला, सिरसा, भिवानी और हिसार ही में पाई गई हैं। फरीदाबाद में पेड़ों की गिनती सबसे कम है।

इसके बाद कुरुक्षेत्र, पलवल, गुड़गाँव और रोहतक का नंबर है। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में वृक्ष आवरण में भी तेजी से गिरावट देखी जा रही है, वर्ष 2019 से 2020 तक वृक्ष आवरण (वन क्षेत्र को छोड़कर) में 140 वर्ग किमी की कमी आई है। ऐसी स्थिति में हरियाली अमावस्या को बड़े पैमाने पर मनाने की जरूरत बढ़ जाती है। हरियाणवी अमावस्या यह मौका उपलब्ध करा रही है कि हम अधिक से अधिक पौधरोपण करके अपने पर्यावरण को बरबाद होने से बचाएं।

-संजय मग्गू

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