चारों तरफ मॉनसून की मार से त्राहिमाम है। दिल्ली एनसीआर की बात करें तो वो भी इस आफत की बारिश के जंजाल में फंसा हुआ है। दिल्ली और हरियाणा दोनों ही प्रदेश में बाढ़ की चपेट में आने से जान और माल ही दोनों के ही नुकसान की भरपाई फिलहाल संभव होते नहीं दिख रही है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अब हथिनी कुंड बैराज की ताकत जवाब दे गई है, जिसने हरियाणा और दिल्ली में तबाही का मंजर दिखा डाला। वो हथिनी कुंड बैराज जो दिल्ली वालों की प्यास बुझाता है। आज वो ही उन्हें डूबा रहा है। हरियाणा प्रदेश के यमुनानगर जिले में बना हथिनी कुंड बैराज जो आज सियासत की भेंट चढ़ रहा है। लेकिन काश ये सियासत करने वाले इसके दूसरे कारण पर भी नजर डाल लेते तो ठीक रहता।
दूसरा कारण है कि बारिश का बोझ सहने में यह बैराज अब सक्षम नहीं रहा है, गौरतलब है कि बैराज किसी बांध की तरह पानी को स्टोर नहीं कर सकता है क्योंकि यह तो सिर्फ पहाड़ों से आने वाले पानी को ही रोकता है और फिर वहां से कैनाल में भेजता है लेकिन जब बारिश ज्यादा हो जाती है तो सारी व्यवस्थाओं को दरकिनार कर पानी को यमुना नदी में खोलकर बैराज को बचाने की कोशिश की जाती है। अब ये सोचने की बात है कि पांच राज्यों की प्यास बुझाने वाला हथिनी कुंड बैराज आज अवैध खनन और वक्त पर मरम्मत ना होने के कारण कमजोर पड़ता जा रहा है।
लगभग 25 साल पहले इस बैराज को करीब दस लाख क्यूसेक पानी का भार सहने के तरीके से बनाया गया था। लेकिन पहाड़ी इलाकों में होने वाली रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने इसके चिंता बढ़ा दी है क्योंकि 1999 के बाद लगातार बारिश की वजह से आने वाली बाढ़ से इस बैराज का रिवरबेट लगातार नीचे जा रहा है और यही वजह है कि यह पानी के ज्यादा भार को दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।
इस बैराज को 168 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है। साल 1996 में बैराज का निर्माण कार्य शुरू किया गया था और 1999 में काम पूरा होने के बाद इसे खोला गया था। 360 मीटर लंबे बैराज का संचालन हरियाणा प्रदेश कर रहा है। दस गेट पानी को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन आज इस बैराज ने सभी को चिंता में डाल दिया है। क्योंकि इसकी ताकत जवाब दे गई है।
नम्रता पुरोहित