नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे। वह अपने समय के सबसे जुझारू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। कहा जाता है कि उन्होंने सबसे पहले जयहिंद का नारा लगाया गया था। वह इतना प्रसिद्ध हुआ था कि जब उन्होंने जापान में रहने वाले क्रांतिकारी रास बिहारी बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला तो उनके सैनिक अभिवादन के तौर पर जयहिंद का नारा लगाते थे। उन्होंने ही सबसे पहले ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा लगाकर देश की जनता को जागृत किया था। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए। सुभाष उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया।
नेताजी से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग है। नेताजी जब कालेज की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उन दिनों बंगाल में बाढ़ आई हुई थी। वह बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए बनाई गई स्वयंसेवियों की टीम में शामिल थे। वह बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सुबह ही निकल जाते थे और शाम को आते थे। एक दिन उनके पिता जानकी नाथ बोस ने उनसे कहा कि क्या आज भी तुम बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जाओगे? गांव में देवी पूजा का आयोजन किया गया है। तुम्हारा रहना जरूरी है। इस पर नेताजी ने जवाब दिया, पिता जी, मेरा जाना बहुत जरूरी है। देवी पूजा में आप जा सकते हैं। मैं बाढ़ पीड़ितों की सेवा करूंगा, तो देवी मां उसे देखकर प्रसन्न होगी। मेरे लिए पूजा करने से ज्यादा जरूरी इस समय बाढ़ पीड़ितों की मदद करना है। यह सुनकर उनके पिता गदगद हो गए।
-अशोक मिश्र