पलवल में टीबी मुक्त बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें महिला सरपंचों ने हिस्सा लिया। इस बीच महिला सरपंचों के साथ प्रतिनिधि के रूप में पति, जेठ और देवर पहुंच गए। जिस पर डीसी नेहा सिंह ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा कि ऐसा नहीं चलेगा। यह महिला सशक्तिकरण का युग है, ऐसे में आपको भी चाहिए कि महिला जनप्रतिनिधियों को बढ़ावा दें।
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी निर्धारित की गई है साथ ही निर्वाचित पंच, सरपंच, ब्लॉक समिति और जिला परिषद सदस्य का पढ़ा लिखा होना भी बेहद जरुरी है उसके लिए शैक्षणिक योग्यता भी निर्धारित की हुई है। लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए तो ज्यादातर जगहों पर महिला सरपंचों के स्थान पर उनके प्रतिनिधि के रूप में पति, जेठ और देवर आगे आते है और महिलाओं को बस कागजों पर लिखे उनके नाम तक सीमित रखा जाता है। पलवल में भी कुछ ऐसा ही हुआ यहां लघु सचिवालय में आयोजित टीबी मुक्त ग्राम मीटिंग में डीसी नेहा सिंह द्वारा उठाए गए कदम की हर तरफ चर्चा ही रही है। यहां महिला सरपंचों के साथ उनके प्रतिनिधि के रूप में पति, जेठ और देवर भी पहुंच गए। जिन्हे देख डीसी नेहा सिंह गरमा गई। उन्होंने महिला सरपंचों के बराबर बैठे पुरुष प्रतिनिधियों को बैठक से बाहर जाने का फरमान दे दिया। डीसी नेहा सिंह ने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर पुरुष प्रतिनिधि किसी भी सरकारी मीटिंग में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। महिलाएं फैसला लेने में सक्षम हैं और आगे से किसी भी मीटिंग में महिला की जगह पुरुष शामिल नहीं होगा।
50 प्रतिशत हिस्सेदारी, फिर भी पुरुष आगे
पंचायती राज संस्थाओं के अंतर्गत निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई है। लेकिन फिर भी हर बड़े फैसले और बैठकों से महिलाओं को दूर रखा जाता है। उनके जगह ज्यादातर उनके बेटे, पति, ससुर, देवर या जेठ प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। आज के समय में ज्यादातर महिलाएं पढ़ी-लिखी है लेकिन फिर भी उनके स्थान पर पुरुष काम करते हैं। इतना ही नहीं पारिवारिक और सामाजिक कार्यकर्मो के साथ-साथ सरकारी कार्यालयों में भी पुरुष प्रतिनिधियों का आना-जाना रहता है। यहां तक की पंचायती दस्तावेजों पर भी महिलाओं के स्थान पर पुरुष प्रतिनिधि हस्ताक्षर करते हैं। सभी फैसले पुरुष ही लेते हैं।
यह चलन आज से नहीं बल्कि काफी समय से बना हुआ है जिससे साबित होता है कि आज भी तमाम तरह की कोशिशों के बाद भी महिलाएं काफी पीछे है। पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर ज्यादातर उनके बेटे, पति, ससुर, देवर या जेठ प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। यहां तक कि पंचायती दस्तावेजों पर भी महिलाओं के स्थान पर पुरुष प्रतिनिधि हस्ताक्षर करते हैं। और उनके दफ्तरों में भी आपको कुर्सी पर पुरुष ही बैठे दिखाई देंगे।