तमिलनाडु के एक मंदिर में एक अनोखी घटना सामने आई है, जिसमें एक भक्त का आईफोन गलती से दानपात्र (हुंडियाल) में गिर गया। इस घटना ने मंदिर की परंपराओं और भक्त के व्यक्तिगत अधिकारों के बीच बहस छेड़ दी है।तमिलनाडु के श्री कंदस्वामी मंदिर, थिरुपुरुर में दिनेश नामक एक भक्त दानपात्र में चढ़ावा चढ़ा रहे थे। इस दौरान उनका आईफोन गलती से दानपात्र में गिर गया। गलती का एहसास होते ही उन्होंने मंदिर अधिकारियों से संपर्क किया और अपना फोन वापस मांगा। लेकिन मंदिर प्रशासन ने उन्हें फोन लौटाने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि हुंडियाल में जो भी चीज जाती है, वह भगवान की संपत्ति बन जाती है।
मंदिर प्रशासन ने फोन देने से किया इनकार
शुक्रवार को जब हुंडियाल खोला गया, तो उसमें आईफोन मिला। मंदिर प्रशासन ने दिनेश से संपर्क किया और उन्हें केवल फोन का डेटा लेने की अनुमति दी। हालांकि, उन्होंने साफ तौर पर कहा कि फोन वापस नहीं किया जा सकता। यह निर्णय मंदिर के नियमों और परंपराओं पर आधारित है, जिसमें हुंडियाल में चढ़ाई गई वस्तुएं मंदिर की संपत्ति मानी जाती हैं।
इस मुद्दे पर तमिलनाडु के मानव संसाधन और सीई मंत्री पीके शेखर बाबू का भी बयान आया। उन्होंने कहा, “दानपात्र में डाली गई हर वस्तु भगवान की संपत्ति होती है। यह परंपरा और नियमों का हिस्सा है, और इसे वापस नहीं किया जा सकता।” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि भक्त को मुआवजा देने की संभावना पर विचार किया जाएगा।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की घटना सामने आई हो। मई 2023 में केरल के अलप्पुझा की एक महिला भक्त, एस संगीता, ने पलानी के श्री धनदायुथपानी स्वामी मंदिर में गलती से अपनी 1.75 तोला सोने की चेन हुंडियाल में गिरा दी थी। घटना की पुष्टि सीसीटीवी फुटेज से होने के बाद, मंदिर के न्यासी बोर्ड ने उनकी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने खर्चे पर नई चेन खरीदकर उन्हें दी।
क्या कहते हैं कानूनी नियम?
तमिलनाडु में हुंडियाल स्थापना, सुरक्षा और लेखा नियम, 1975 के तहत हुंडियाल में चढ़ाई गई कोई भी वस्तु वापस नहीं की जा सकती। इस नियम के अनुसार, दानपात्र में डाली गई सभी चीजें भगवान की संपत्ति मानी जाती हैं और उन्हें भक्त को लौटाना मंदिर प्रशासन के लिए संभव नहीं है। दिनेश ने मंदिर प्रशासन के इस निर्णय को अस्वीकार करते हुए अपना फोन वापस मांगा। उनका कहना है कि फोन उनके लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मंदिर प्रशासन की परंपराओं और कानूनी नियमों के तहत यह संभव नहीं है।
मंत्री पीके शेखर बाबू ने मामले को सुलझाने के लिए चर्चा की बात कही है। यह देखा जाना बाकी है कि भक्त को मुआवजा देने का कोई तरीका निकाला जाता है या नहीं।
परंपरा बनाम आधुनिकता
यह घटना भारतीय धार्मिक परंपराओं और आधुनिक जीवनशैली के बीच टकराव को दर्शाती है। जहां एक ओर मंदिर प्रशासन धार्मिक नियमों का पालन कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भक्त अपने व्यक्तिगत अधिकारों की बात कर रहा है। इस तरह की घटनाएं न केवल कानून और परंपरा के बीच सामंजस्य बनाने की आवश्यकता को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि भक्तों और प्रशासन के बीच संवाद का बेहतर तरीका कैसे खोजा जा सकता है।
इस घटना ने धार्मिक नियमों और व्यक्तिगत अधिकारों के संतुलन पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे मामलों का समाधान कैसे निकाला जाता है।