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हरियाणा में शिक्षा से होने वाले पलायन को रोकना बहुत जरूरी

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शिक्षा से पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है। इस समस्या से हरियाणा ही नहीं, देश के कई राज्य जूझ रहे हैं। इन सभी राज्यों में ड्रापआउट की समस्या के कारण लगभग एक जैसे हैं। लेकिन इनसे निपटने के तरीकों में भिन्नता हो सकती है। हरियाणा सरकार ने भी तय किया है कि प्रदेश में जितने भी ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी है या फिर स्कूल ही नहीं गए हैं, उनका पता लगाकर उनके पढ़ने की व्यवस्था सरकार करेगी।

देश भर में बच्चों को पढ़ने की ललक पैदा करने और उनके माता-पिता को एक टाइम खाने की चिंता करने से मुक्ति दिलाने के लिए ही मिड-डे मील की व्यवस्था केंद्र सरकार ने की थी। मिड डे मील की व्यवस्था के लिए होने वाले व्यय का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार वहन करती है, राज्य सरकार को भी इसमें अपनी कुछ भागीदारी निभानी पड़ती है। ज्यादातर राज्यों में इसका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिला है।

पहले की अपेक्षा सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या में इजाफा भी हुआ है। लेकिन कभी-कभी मिड डे मील में घोटाले भी सामने आए हैं। कुछ दूसरी तरह की अव्यवस्थाएं भी दिखाई दी हैं। कहीं छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा दिखाकर घोटाले किए गए हैं, तो कहीं मानकों के अनुरूप मिड डे मील नहीं परोसे गए हैं। जब कोई योजना व्यापक पैमाने पर लागू होती है, तो इस प्रकार की गड़बड़ियां होनी स्वाभाविक है।

इस मामले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का नजरिया साफ है। वह सरकारी हो या गैर सरकारी, सभी स्कूलों से ड्राप आउट करने वाले बच्चों का पता लगाकर उन्हें स्कूल तक लाने की व्यवस्था के पक्षधर हैं। इसके लिए उन्होंने मौलिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे ऐसे बच्चों का पता लगाएं जिनके आधार कार्ड नहीं बने हैं या वे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके हैं। उनका पता लगाकर स्कूल तक लाने के लिए हरसंभव प्रयास करने के निर्देश दिए गए हैं। एक अनुमान के अनुसार, तीन हजार बच्चे प्रदेश में ऐसे हैं जिनका आधार कार्ड नहीं बना है।

ऐसी स्थिति में उनको ट्रेस कर पाने में सरकार को दिक्कत हो रही है। स्कूलों से ड्राप आउट करने वाले बच्चों में ज्यादातर वे हैं जिनके मां-बाप काफी गरीब हैं। ऐसे बच्चों के अभिभावकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपनी मामूली सी कमाई में अपना और अपने परिवार को पेट भरें या बच्चों को शिक्षा दिलाएं। वैसे इन बच्चों के मां-बाप को यह अच्छी तरह पता होता है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई उसके जीवन भर काम आने वाली है, लेकिन उनकी गरीबी उन्हें बाध्य करती है कि वे अपने बच्चों को स्कूल न भेजें। ऐसे ही परिवारों के लिए मिडडे मील जैसी व्यवस्था की गई थी। इसके बावजूद सीएम मनोहर लाल का प्रयास रंग जरूर लाएगा।

-संजय मग्गू

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