देश रोज़ाना: जम्मू-कश्मी राज्य बार-बार आतंकी समस्याओं से उलझकर सदैव युद्ध के मुहाने पर ही खड़ा रहता है और रोज किसी न किसी आतंकी वारदात का सामना करता रहता है। वहां भारत सरकार जिस गति से उस राज्य का विकास करना चाहती है, पाकिस्तानी आतंकी बार बार आड़े आकर भारतीय विकास के रास्ते को अवरुद्ध कर दिया करते हैं। इन्हीं सब समस्याओं से निपटने के लिए पिछले कुछ वर्षों में राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई विकासशील कदम उठाए गए। लेकिन वास्तव में वहां के आम लोगों को उसका लाभ उस प्रकार नहीं मिल सका जिसकी उम्मीद केंद्र सरकार ने की थी।
आप कश्मीर के किसी भी भाग में चले जाएं, वहां के वातावरण में ऐसा सब कुछ है जिसकी कल्पना हम-आप स्वर्ग के रूप में करते हैं। जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए द्वारा दिए गए विशेष दर्जे को हटाने के लिए संसद ने पांच अगस्त 2019 को मंजूरी दी। तब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘ऐतिहासिक भूल को ठीक करने वाला कदम’ कहा था । भारत के संविधान में 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 शामिल किया गया था। यह जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग रखता था। इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार था कि वह अपना संविधान स्वयं तैयार करे। साथ ही संसद को अगर राज्य में कोई कानून लाना है तो इसके लिए यहां की सरकार की मंजूरी लेनी होती थी।
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले, भारत के भीतर एक अलग लघु राष्ट्र का आभास कराने वाले, अनुच्छेद 370 के सभी प्रविधान अब समाप्त हो चुके हैं। अनुच्छेद 35ए भी अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है। अगर आज जम्मू कश्मीर में विशेषकर कश्मीर में जगह जगह तिरंगा लहराता नजर आता है तो उसका श्रेय पांच अगस्त 2019 को भारतीय संसद में पेश किए गए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को ही दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के इस एक कदम ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान और उसके एजेंटों की राजनीति व एजेंडे को लगभग समाप्त कर दिया है। अब आजादी की बात होती है, लेकिन कश्मीर की नहीं, बल्कि गुलाम जम्मू कश्मीर की जिसे 1947 में पाकिस्तानी फौज ने कबाइलियों की मदद से हथिया लिया था।
सभी केंद्रीय कानून आज जम्मू कश्मीर में लागू हो चुके हैं। जम्मू कश्मीर के भारत में विलय पर उठने वाले सभी प्रश्न समाप्त हो गए हैं। लोकतंत्र में राजशाही का आभास कराने वाली दरबार मूव की परम्परा समाप्त हो गई। अब एक वर्ग, विशेषकर मुस्लिम तुष्टिकरण और कश्मीर केंद्रित आॅटोनॉमी और सेल्फ रूल की सियासत नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर के समग्र विकास की सियासत पर बात होने लगी है। आतंकियों और अलगाव वादियों का तंत्र अब ताश के महल की तरह ढह चुका है। वैसे अब सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने लम्बी बहस सुनने के बाद धारा 370 के अहमियत को समाप्त कर दिया है।
आम कश्मीरी खुली फिजा में सांस ले रहा है। फिर से जीवंत होती सिनेमा संस्कृति बता रही है कि कश्मीर कभी भी पुरातनपंथियों के साथ नहीं था। लगभग 80 हजार करोड़ रूपए का देशी विदेशी निवेश हो रहा है। जम्मू कश्मीर पूरे हिंदुस्तान में एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां दो-दो एम्स और दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थान पहुंच चुके हैं। जम्मू कश्मीर में जो एक तरह से इस्लामिक कट्टरवाद, कश्मीर के रास्ते भारत पर जिहादी आक्रमण का रास्ता तैयार हुआ था, वह बंद हो गया है।
आज पूरे भारत से कोई भी नागरिक जम्मू कश्मीर में आकर बस सकता है, जमीन जायदाद खरीद सकता है। वहां ओबीसी को उसका हक मिला है। जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कश्मीरी हिंदुओं और गुलाम जम्मू कश्मीर के शरणार्थियों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिला है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
- निशिकांत ठाकुर