राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (KAPIL SIBBAL RSS: ) प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी पर दिए गए संबोधन के एक दिन बाद, राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा कि भागवत के बयान और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-नीत सरकार के जमीनी कार्यों में बड़ा अंतर है। आरएसएस प्रमुख ने शनिवार को कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में भारत अधिक मजबूत हुआ है और वैश्विक स्तर पर उसकी साख बढ़ी है, लेकिन कई षड्यंत्र देश के संकल्प की परीक्षा ले रहे हैं।
KAPIL SIBBAL RSS: सिब्बल ने कहा, 2014 के बाद समाज में कई विभाजन हुए हैं
भागवत के संबोधन का जिक्र करते हुए सिब्बल ने कहा, “मोहन भागवत ने विजयादशमी पर अच्छा बयान दिया। उन्होंने कहा कि इस देश में देवता और संत बंटे हुए नहीं होने चाहिए। यह विभिन्न धर्मों और भाषाओं का देश है।” सिब्बल ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, “महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखी थी, इसलिए सभी हिंदुओं को वाल्मीकि दिवस मनाना चाहिए। ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? उन्होंने कहा कि जब तक सद्भाव कायम रहेगा, यह कायम रहेगा। मैं उनके बयान का स्वागत करता हूं। लेकिन मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूं। आरएसएस उस सरकार का समर्थन करता है, जो आपके बयान के खिलाफ काम करती है।” पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2014 के बाद समाज में कई विभाजन हुए हैं और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया तथा उन पर बुलडोजर चलाए गए। सिब्बल ने कहा कि ‘लव जिहाद’ और ‘फ्लड जिहाद’ की अवधारणाओं पर बात हो रही है। उन्होंने कहा, “मैं आरएसएस से पूछना चाहता हूं कि जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो वह सवाल क्यों नहीं उठाता? लोग दूसरों की नागरिकता पर संदेह करते हैं। कई विवादास्पद बयान दिए जाते हैं, आरएसएस सवाल क्यों नहीं उठाता।”
वाल्मीकि समुदाय के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी: सिब्बल
सिब्बल ने कहा कि देश और उसके नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों और वाल्मीकि समुदाय के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, जो ‘डर के साये में जी रहे हैं।’ सिब्बल ने कहा, “देखिए महाराष्ट्र में क्या हुआ, राकांपा के (बाबा) सिद्दीकी की हत्या कर दी गई। सरेआम हत्या की घटनाएं हो रही हैं। असम के मुख्यमंत्री विवादास्पद बयान देते रहते हैं, मुझे हैरानी होती है कि आप (आरएसएस) कुछ नहीं कहते।” उन्होंने कहा कि भागवत की टिप्पणी और सरकार के कार्यों में बड़ा अंतर है। नागपुर में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने ‘‘सांस्कृतिक मार्क्सवादियों’’ की भी आलोचना की, उन पर शिक्षा और संस्कृति को कमजोर करने, संघर्ष को बढ़ावा देने और सामाजिक एकता को बाधित करने का आरोप लगाया।