इंडिया गठबंधन ने प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया है। हालांकि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की यह राजनीति हो सकती है कि खड़गे के मनाकर देने पर उनका नाम प्रस्तावित हो सकता है, लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी है। सवाल यह है कि लार्जर दैन लाइफ वाली छवि के नरेंद्र मोदी का मुकाबला मल्लिकार्जुन खड़गे कर पाएंगे। यह सही है कि अब तक प्रधानमंत्री पद तक कोई दलित नहीं पहुंचा है।
भारतीय आधार पर यदि बात करें तो लोकसभा में दलितों के लिए 84 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से भाजपा के पास 46 सीटें हैं। कांग्रेस को इनमें से पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटें हासिल हुई थीं। यदि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के दल खड़गे के नाम पर सहमत हो जाते हैं, तो यह सही है कि आगामी लोकसभा चुनाव रोचक हो सकता है। इंडिया गठबंधन में टीएमसी, आप और कुछ अन्य दल ऐसे भी हैं जो गांधी परिवार के साथ अपने को जोड़कर देखना नहीं चाहते हैं, लेकिन उन्हें खड़गे के नाम पर जुड़ने में किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं हो सकती है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इंडिया गठबंधन में सबको स्वीकार्य भी नहीं हैं। गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता जितनी सहजता से खड़गे से बात कर लेते हैं, वैसी सहजता राहुल गांधी या सोनिया गांधी से बात करते हुए नहीं महसूस करते हैं। यह बात भी सही है कि खड़गे सरल स्वभाव के दलित नेता हैं। दलित राजनीति में मल्लिकार्जुन खड़गे एक बड़ा नाम है। देश में दलितों की एक बहुत बड़ी आबादी है। यदि इंडिया गठबंधन तालमेल के साथ खड़गे को एक सधी हुई रणनीति के साथ आगे करता है, तो भाजपा के सामने एक संकट खड़ा कर सकता है।
ओबीसी नेता के रूप में भाजपा के पास मोदी चेहरा है। मोदी देश और विदेश में काफी लोकप्रिय भी हैं। राष्ट्रीय राजनीति में जब मोदी ने प्रवेश किया था, तो अपने को चाय बेचने वाले के रूप में पेश किया था। बाद में उन्होंने अपनी ब्रांडिंग पर काफी खर्च किया। राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया उनके साथ है। परसेप्शन के इस दौर में मीडिया ने उनकी छवि बहुत बड़ी बना दी है। खड़गे को अपनी छवि बनाने के लिए नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। यह तो सभी जानते हैं कि वे दलित समुदाय से आते हैं और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही है।
लेकिन गठबंधन के सामने दिक्कत यह है कि वह अभी तक लोकसभा चुनाव लड़ने के मुद्दे तलाश रहा है। सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यदि मनमाफिक सीटें नहीं मिली तो कौन सा दल छिटक जाएगा, यह भी नहीं कहा जा सकता है। वहीं भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने पूरी बिसात बिछा रखी है। एक मामले में खड़गे और मोदी एक दूसरे के विपरीत ध्रुव पर खड़े हैं और वह है सादगी। दलित नेता खड़गे की सादगी का कोई मुकाबला नहीं है। खड़गे अपनी सादगी और अहंकार रहित व्यवहार से कुछ हद तक दलित और ओबीसी मतदाताओं को लुभा सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो आगामी लोकसभा चुनाव रोचक हो सकता है।
-संजय मग्गू