हमारे देश में एक बहुत पुरानी कहावत है-जैसी करनी, वैसी भरनी। अर्थात जो जैसा कर्म करेगा, उसको वैसा ही फल मिलेगा। यही वजह है कि किसी भी कर्म या क्रिया के बाद जो परिणाम हासिल होता है, उसे कर्मफल या क्रियाफल कहा जाता है। कहा जाता है कि किसी राज्य में एक राजा था। वह बहुत ही दयालु और प्रजापालक था। वह अपनी प्रजा के हित का बहुत ध्यान रखता था। उसे पता था कि यदि राज्य के दरबारियों और अधिकारियों पर नजर न रखी जाए, उनकी बार-बार परीक्षा न ली जाए, तो वे भ्रष्ट और जनता के प्रति अनुदार हो जाते हैं।
वे प्रजा पर अत्याचार करने लगते हैं। राजा की भी सीमाएं होती हैं, वह कहां-कहां पर प्रजा का ध्यान रखेगा। यही सोचकर वह सबकी परीक्षा लिया करता था। एक बार उसने अपने तीन दरबारियों को एक बड़ा सा थैला देते हुए कहा कि तुम मेरे बगीचे में जाओ और खाने लायक फल लेते आओ। तीनों दरबारियों ने थैला लिया और राजा के बगीचे में चले गए। एक दरबारी ने विभिन्न प्रकार के अच्छे-अच्छे फल चुने और पूरा थैला भर लिया। दूसरे दरबारी ने सोचा कि राजा कौन सा इस थैले का फल खाएगा। वह इसे देखेगा भी नहीं।
इसलिए उसे जो भी मिला, उसने अपने थैले में भर लिया। तीसरे दरबारी ने सोचा कि राजा तो इसको देखने से रहा। उसने अपने थैले में घासफूस भर लिया। तीनों राजा के पास पहुंचे। राजा ने उनके थैले सहित तीनों को एक महीने तक जेल में डालने को कहा। पहला वाला फल खाकर एक महीने तक जिंदा रहा। दूसरा दरबारी कुछ दिन तक तो ठीक रहा, लेकिन बाद में बड़ी मुश्किल हुई। तीसरा दरबारी कुछ दिनों तक भूखा रहने के बाद मर गया। जिसने जैसा कर्म किया था, उसको वैसा फल मिल गया।
-अशोक मिश्र